पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/९४

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प्रथम सापान, बालकाण्ड । "तब अति रहे अचेत" इस वाक्य से यह ध्वनि प्रकट हो रही है कि अचेत तो अब भी हैं, पर तब लड़कई के कारण ज्यादा नासमझ था । सरयू और घाघरा का संगम-जो अयो- ध्याजी के पच्छिम बारह कोस पर स्थित है, वह-वराहक्षेत्र है। सीता बकता ज्ञान-निधि, कथा राम के गूढ़ । किमि समुझ में जीव जड़, कलिमल ग्रसित-बिमूढ़ ॥३०॥ रामचन्द्रजी की कथा गढ़ (जिसका आशय जल्दी समझ में न श्रावे ) है, उसके श्रोता. वक्ता दोनों शान-निधान होने चाहिएँ । मैं कलि के पापो से असा हुश्रा जड़जीव महामूर्ख उसको कैसे समझ सकता था ? ॥ ३०॥ सभा की प्रति में 'किमि समुझइ यह जीव जड़' पाठ है। चौ०-तदपिकही गुरुबारहि बारा । समुझि परी कछु भति अनुसारा । भाषोबद्ध करब में सोई। मेरे मन प्रबोध जेहि हाई ॥१॥ तो भी गुरुजी ने गार वार कही, तब कुछ बुद्धि के अनुसार समझ पड़ी। उसीको मैं भाषा- छन्दों में निर्माण करूंगा, जिससे मेरे मन में सन्तोष होगा ॥१॥ जस कछु बुधि-विवेक-बल मेरे । तस कहिहउँ हिय हरि के प्रेरे ॥ निज सन्देह-मोह-भ्रम-हरनी । करउँ कथा भव-सरिता-तरनी ॥२॥ जैसा कुछ बुद्धि और ज्ञान का बल मुझ में है, वैसा इदय में भगवान की प्रेरणा से कहूँगा। अपना सन्देह, अज्ञान और भ्रम को हरनेवाली तथा संसार रूपी नदी के लिये नौका रूपी राम- कथा मैं बनाता है ॥२॥ बुध-बिस्राम सकल-जन-रजनि । राम-कथा कलि-कलुष-बिभञ्जनिः ॥ रामकथा-कलि-पत्नग-भरनी। पुनि बिबेक-पावक कहँ अरनी ॥३॥ रामचन्द्रजी की कथा विद्वानों को विश्राम देनेवाली और सम्पूर्ण भक्तजनों को प्रसन्न करनेवाली है। फिर राम-कथा कलिकाल-रूपी सर्प के लिए मोरिनी पक्षी है और शान रूपी अग्नि को प्रज्वलित करने में अग्निमन्थ की सूखी लकड़ी रूप है ॥३॥ "भरणी मयूरपत्नीस्यात्-इति मेदनी कोशः" । अरणी एक प्रकार का जंगली वृक्ष है, इसकी लकड़ी यज्ञादि में आग निकालने के काम आती है। इसको गनियार और अगेथु भी कहते हैं । इसकी सूखी लकड़ी मसाल की तरह जलती है। और घिसने से इससे तुरन्त अनि उत्पन्न होती है। रामकथा कलि कामद गाई । सुजन सजीवनि मूरि सुहाई ॥ सोइ बसुधातल सुधा तरङ्गिनि । भय भजनि बम भेक भुअङ्गिनि neu कलियुग में रामचन्द्रजी की कथा कामधेनु है, सज्जनों के लिए सुन्दर संजीवनी जड़ी .