पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/९४८

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७३ । पष्ठ सोपान लङ्काकाण्ड । पद के कथन में यह अगढ़ व्यङ्ग है कि थाली स्वर्ग गया, दस दिन बाद तुम भी वहीं जानोगे तव कुशल पूछना । राम-बिरोध कुसल जसि होई। सो सब ताहि सुनाइहि साई । सुनु सठ भेद होइ मन ताके । श्रीरघुवीर हृदय नहिं जाके ॥५॥ रामचन्द्रजी के वैर से जैसा फल्याण होता है, वह सब तुझे वही (बाली ) सुनावेगा। अरे मूर्ख ! सुन, भेद उसके मन में होगा जिसके हृदय में श्रीरघुनाथजी नहीं हैं ॥५॥ वाच्यार्थ और व्यशार्थ बरावर होने से तुल्यप्रधान गुणीभूतव्यंग है अर्थात् मेरे हदय में रामचन्द्रजी का निवास है, तेरी यह भेष-नीति नहीं चल सकती। दो०-हम कुल-पालक सत्य तुम्ह, कुल-पालक दससीस । अन्धउ बधिर न अस कहहि, नयन कान तब बीस ॥२१॥ हे दशानन ! सचमुच हम कुल के नाश करनेवाले हैं और तुम कुटुम्ब के पालनेवाले हो । अन्धे और चहरे भी ऐसा न कहेंगे, तुम्हारे तो यीस आँख तथा कान है ॥२१॥ चौ०-सिव-बिरञ्चि-सुर-मुनि-समुदाई । चाहत जासु चरन-सेवकाई । तासु दूत होइ हम कुल बारा । ऐसिहु प्रति उर बिहर न तोरा ॥१॥ शिव, प्रमा; देवता और मुनि मण्डला जिनके चरणों की सरकाई चाहते हैं, उनका दूत हो कर हमने कुल बोर दिया ? ऐसी बुद्धि होने पर भो तेरो छाती नहीं फट जाती ! ॥१॥ सुनि कठोर बानी कणि केरी । कहत दसानन नयन तरेरो । खल तव कठिन बचन सग सहऊँ । नीति धरम मैं जानत अहऊँ ॥२॥ अंगद की कठोर पाणी सुन कर रावण आँखें तरेर (नेत्र के इशारे से डाँट पता) कर कहने लगा-अरे दुष्ट ! तेरे सब कठोर वचन इस लिए सहता हूँ कि मैं नीति और धर्म जानता हूँ अर्थात् दूत का वध नीति तथा धर्म के विरुद्ध है, इसी से मारता नहीं हूँ ॥२॥ कह कपि धरमलीलता तोरी । हमहुँ सुनी कृत पर-तिय-चारी। देखी नयन दूत रखवारी। बूडि न भरहु धरम-व्रत-धारी ॥३॥ अंगद ने कहा-तेरी धमशीलता हमनेभी सुनी है कि तू पराये को स्त्री चुराता है। दूत की रखवाली तो आँखो देखी है, ऐसे धर्म नत का धारण करनेवाला ! तू डूब कर क्यों नहीं मरजाता?॥३॥ शंका-अङ्गद ने दूत-रक्षा तो. आँख से नहीं देखो, फिर ऐसा क्यों कहते हैं ? उत्तर-- रामचरितमानस के अनुसार दूत ( हनुमान जो ने तेरी ) रखवाली आँखो देखी है, उन्हें मारने के लिए तू ने विविध योद्धा भेजे, पूर्व में आग लगवा दी इत्यादि । नीति धर्म का पालन अच्छी तरह से किया। दूसरी बात किसी रामायण के मत से यह कही जाती है कि जिस समय अङ्गद और रावण से बातचीत हो रही थी ; उसी समय कुबेर का भेजा हुआ एक दूत आया। उसने कुवेर का संदेशा कहा कि रामचन्द्र जी से युद्ध न कर के सुलह ८