पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/९६३

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रामचरित-मानस । जुगुति सुनत राजन मुसुकाई । मूढ़ लिखे कहूँ बहुत कुठाई । बालि न कबहु गाल अस मारा । मिलि तपसिन्ह त भयेसि लवारा॥३॥ यह युक्ति सुन रावण मुस्कुरा फर बोला-अरे मूर्ख! तू इतनी बड़ी मुलाई कहाँ सीखी। बाली ने कभी ऐसा गाल नहीं मारा था, ते तपस्थियों से मिल कर लफडा हुना है ॥३॥ इस कथन से यह लक्षित होना कि तपस्वी झूठे हैं तब तो तू लवार हुआ लक्षणामूलक गुणीभूत व्यक है। साँचेहु मैं लशार झुज बीहा । जौँ न उपारउँ तव दस-जीहा । समुझि राम प्रताप कपि कोपा। समा साँझ पन करि पद रोपा ॥४॥ असद ने कहा है रावण! सचमुच लवार है, यदि तेरी दसों जीभ नहीं उखाड़ लेता हूँ। रामचन्द्रजी के प्रताप (तुन ते कुलिस कुलिस तृण करई) को समझ फर प्रसाद क्रुद्ध हुए और प्रतिज्ञा करके सभा के वीर पाँच रख दिया ॥४॥ जौँ मल चरन सकसि लठटारी । फिरहिं राम सीता मैं हारी ॥ सुनहु सुमट सब कह दससीसा । पद गहि धरनि पछारहु कीसा ॥५॥ अरे दुष्ट ! यदि तू मेरे पाँव को हटा सके तो मैं सीताजी को हार जाता हूँ रामचन्द्रग्री लौट जायँगे । रावण घोला-हे सेव शूरवीरो! सुनो, पाँव पकड़ कर बन्दर को धरती पर पटक दो ॥५॥ प्रदजी का प्रतिक्षा-पूर्वक पाँच रोपना और सीताजी को हारनेकी चाजी लगाना प्रतिज्ञाबद्ध 'स्वाभावोक्ति अलंकार' है। इस स्थल में लोग तरह तरह की शङ्का करते हैं। अङ्गदजी को जनकनन्दिनी को हार जाने का क्या अधिकार था। यदि पाँव हट जाता तो कितना बड़ा अनर्थ होता (सीताजी की वाजी यो लगाया) सीताजी स्वामी की प्रियभार्थी • थीं, रावण की जीभ उखाड़ने, लङ्कापुरी चौपट करने में तो रामाशा के बिना न कर सकना कहा, पर सीताजी के हारने की प्रतिक्षा विना रामचन्द्रजी की आज्ञा के कैसे कर दी? इत्यादि । उत्तर-रामचन्द्रजी ने अङ्गद को अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजा और कह दिया कि "काज हमार तासु हित हाई रिपु सन करेहु बतकही सोई । घटुत वुझाइ तुम्हहिं का कहऊँ परम चतुर मैं जानत अहऊँ' इसलिए प्रशद को स्वामी प्रदच हर प्रकार का अधिकार कार्य- साधन के लिए था। अङ्गदजी को राम प्रताप का मन में दृढ़ विश्वास था कि राक्षसों के हटाने से तिल भर भी मेरा पाँव नहीं हट सकता। दोहावली में गोसाईजी ने एक दोहा में कहा है कि-तेहि समाज किय कठिन-पन जेहि तालेउ कैलास । तुलसी प्रभु महिमा कहउँ, की सेवक विश्वास । सीताजी की बाजी इसलिए लगाया कि इससे रावण विशेष उत्कण्ठित होगा और शक्ति भर प्रयत्न करेगा। दूसरों के हताश होने पर स्वयम् मेरा पैर पकड़ने को उद्यत होगा, तब उसे लजित करने का अच्छा अवसर मिलेगा, इत्यादि । .