पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/९६४

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पष्ट सोपान, लङ्काकाण्ड । 'इन्द्रजीत आदिक बलवाना । हरषि उठे जहँ तहँ भट नाना ॥ झपटहिँ करि बल बिपुल उपाई । पद न दरइ बैठहिँ सिर नाई ॥६॥ मेघनाद आदिक बहुत से बलवान योद्धा प्रसन्न होकर जहाँ तहाँ से उठे। वे झपट कर खुम जोर से यत्न करते हैं, परन्तु पाँच नहीं हटता तय सिर नीचे कर के (लज्जित हो ) बैठ जाते हैं ॥६॥ अनेक योद्धाओं के प्रयत्न करने पर भी पैर कान टलना अर्थात् कारण विद्यमान रहते फलन प्रकट होना 'विशेषोक्ति अलंकार है। पुनि उठि झपटहिँ सुरआराती । दरइ न कोस चरन एहि भाँती ॥ पुरुष-कुजोगी जिमि उरगारी । लाह-धिटप नहिँ सकहिं उपारी ॥७॥ . फिर उठ कर राक्षस टूट पड़ते हैं, कागभुशुण्डजी कहते हैं-हे गरुड़ ! अमद का चरण इस तरह नहीं रलता है जैसे असंयमी (बुरी वासनाओं में लगे हुए) मनुष्य अज्ञान रूपी वृक्ष को (हृदय रूपी भूमि से,) नहीं उखाड़ सकते ॥७॥ दो-कोटिन्ह खेघनाद सस, सुलट उठे हरपाइ । झपटहिँ टरह न कपि-चरन, पुनि बैठहिँ सिर नाइ । मेघनाद के समान फरोड़ों योला प्रसन्न हो कर उठे वे पाँच हटाने के लिए वेग से प्राक्रमण करते हैं। पर यह हटता नहीं, फिर नीचे मस्तक करके बैठ जाते हैं। भूमि न छाड़त कपि-चरन, देखत रिपु-मद-योग । कोटि चित्र त सन्त कर, मन जिमि नीति न त्याग ॥३४॥ श्रङ्गद का पैर धरती को नहीं छोड़ता है, यह देखकर शत्रु का घमण्ड दूर हो गया। यह इस तरह जमीन से नहीं टलता है जैसे करोड़ों विघ्न से लज्जनों का मन नीति का त्याग नहीं चौ०-कपि-बल-देखि सकल हिय हारे । उठा आपु कपि के परचारे ॥ गहत चरन कह बालिकुमारा । सम-पद-गहे न तोर उबोरा ॥१॥ अजद का पल देख कर सब क्य में हार गये, तब अनद के ललकारने पर रावण स्वयम् उठा । पाँव पकड़ते समय बालिकुमार ने कहा-सेरा पैर पकड़ने से तेरा बचाव नहीं हो सकता ॥१॥ रावण को पाँच पकड़ने से बहाने की बात कह कर रोकना 'व्याजोक्ति अलंकार' है। इसमें व्यसनामूलक मूद ध्वनि है कि यदि रावण ऐसा करेगा तो स्वामी का अपकर्ष प्रकट होगा। लोग कहेंगे कि जिस रावण से एक बन्दर का पाँव हटाये नहीं हटा उसको रामचन्द्रजी ने जीत हो लिया तो कौन सी विषेशता की बात है इससे युक्ति-पूर्वक वर्जन किया। करता॥३४॥ ११२