पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/९७९

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१०४ रामचरितमानस । काल रूप खल-बन-दहन, गुनागार छन बोध । सिव-बिरउिच जेहि सेवहि, तासाँ कवन विरोध ॥४॥ जो दुष्ट रूपी वन के जलानेवाले काल रूप, (अग्नि) गुणों के स्थान और शान की राशि हाथवा मेध हैं। जिनकी सेवा ब्रह्मा,और शिवजी करते हैं, उनले कौन सा विरोध है ? ॥४॥ जिनकी सेवां शिव-ब्रह्मा करते हैं, उनसे आप का कौन सा वैर है ? इस वाक्य में वाच्यसिद्धान शुणीभूत व्यक है कि आप के हन्टदेव और परदाश जिनके सेवक है, उनले श्राप को कदापि विरोध न मानना चाहिए । चौ०-परिहरि बयर देहु बैदेही । अजहु कृपानिधि परम सनेही ॥ ता के बचन्द बाल लम लागे । करिया मुख करि जाहि अभागे ॥१॥ बैर त्याग कर जानकी को दे दो और सब से बढ़ कर स्नेह करनेवाले कृपानिधान (राम- चन्द्रजी)ो भजो । उसके वचन रावण को वाण के समान लगे और बोला-अरे भागे ! मुंह काला करके यहाँ से चला जा ॥१॥ बूढ़ भयेति न त मरतेउँ सोही। अब जनि नयन देखावसि माही । तेहि अपने मन अस अनुमाना । बध्यो चहत एहि कृपानिधाना ॥२॥ बुड्ढा हो गया नहीं तो तुझे मार डालता, अब मुझे शाँख (अपना मुख) न दिखावे! उस ने अपने मन में यह अनुमान शिमो कि कृपानिधान रामचन्द्रजी इसको मारना ही चाहते हैं (इसी से अविचल बुद्धि-भ्रम हुया है) ॥२॥ सो उठि गयड कहत दुर्बादा । तब सकोप बोलेउ घननादा ॥ कौतुक प्रात देखियहु सारा । करिहउँ बहुत कहउँ का थोरा ॥३॥ रावण के दुर्वचन कहने पर वह (मोल्यवान) उठ कर चला गया, तब मेघनाद क्रोध कर के बोला । सबेरे मेरा समाशा देखियेगा, फऊँगा बहुत पर उसे थोडा भी क्या कहूँ (तो उचित नहीं) अर्थात् कर के ही दिखाऊँगा ॥ ३ ॥ एक विद्वान टीकाकार ने चौपाई के प्रथम चरण का इस प्रक्षार अर्थ किया है कि "वह दुर्वाद (छोटी यात) कहता हुश्री उठ कर चला गया। रावण जैसे प्रतापी योद्धा और राजा, को माल्यवान की हिम्मत थी कि दुर्वाक्य कहता ? वह बेचारा रावण की खोटी बाते सुन कर चुपचाप दबार से उठ कर चला गया। सुनि सुत बचन भरोसा आवा । प्रीति समेत अङ्क बैठावा करत बिचार भयउ. भिनुसारा । लागे कपि पुनि चहूँ दुआरा ॥४॥ पुत्र की बात सुन कर,रावण को भरोसा हुश्रा और प्रीति के सहित उसको गोद में बैठा लिया । इस तरह विचार करते सबेरा हो गया, फिर बन्दरों ने चारों फाटक को जा घेरा॥ ४ ॥ . 1