पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/९८०

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२०५ चले। षष्ठ सोपान, लङ्काकाण्ड । कोपि कपिन्ह दुरघट-गढ़ धेश । नगर कोलाहल भयउ घनेरा ॥ बिबिधायुध-धर निसिचर धाये । गढ़ते पर्वत-सिखर ढहाये ॥५॥ बन्दों ने क्रोध कर के दुस्तर किले को घेरा लिया, नगर में बड़ा हल्ला हुआ। अनेक प्रकार के हथियार ले कर राक्षस दौड़े, उन सभों ने गढ़ के ऊपर से पत्थरों के चट्टान गिराये ॥५॥ हरिगीतिका-कुन्द । ढाहे महीधर-शिखर-कोटिन्ह, बिबिध गिधि गोला घहरात जिमि पनि-पात गरजत, जनु प्रलय के बादले ॥ मर्कट बिकट भट जुटत कठत न, लरत तनु जर्जर भये। गहि सैल तेइ गढ़ पर चलावहि, जहँ सो सहँ निसिचर हये ॥२॥ करोड़ो पर्वतों के शिखर गिराये और बहुत तरह के गोले (तोपों द्वारा ) चले। वे वज- पात जैसे घहराते हैं, पाने प्रलयकाल के बादल गरजते हो । भयङ्कर योद्धात्रा से बन्दर भिड़ जाते हैं, वे कटते (मुड़ते नहीं, लड़ते लड़ते शरीर झाँझर (धावमय) हो गया। उन्हीं पत्थरों को पकड़ कर किले पर चलाते हैं, जो राक्षस जहाँ से मारते थे. वे वहीं मारे गये ॥२॥ दो-मेघनाद सुनि. लवन अस, गढ़ पुनि छैका आइ ।' उतरि दुर्ग ते बीर बर, सनमुख चलेउ बजाइ ॥४६॥ मेघनाद ने यह कान से सुना कि बन्दरों ने आकर फिर किले को घेर लिया है। तब वह वीर श्रेष्ठ गढ़ से नीचे उतर कर सामने उड्डा पजाकर चला Mesn चौ० कह कोसलाधील दोउ स्वाता । धन्वी सकल लोक बिख्याता ॥ कह नल-नील-दुबिद-सुग्रीवाँ । अङ्गद हनूमन्त बलसीवाँ ॥१॥ अयोध्या के राजा दोनों भाई कहाँ हैं ? जो सम्पूर्ण लोकों में धनुर्धर प्रसिद्ध है। मल नील, द्विविद, सुग्रीव कहाँ है ? और बल के सौंव अगद, हनुमान कहाँ है ? ॥१॥ कहाँ बिभीषन आता-द्रोही । आजु सठहि हठि मारउँ ओही। अस कहि कठिन बान सन्धाने । अतिसय क्रोध सवन लगि ताने ॥२॥ भाई से वैर करनेवाला विभीषण कहाँ है ? आज उस मूर्ख को मैं इठ करके मारूंगा ऐसा कह कर कठिन वाणों का सन्धान किया और अत्यन्त क्रोध से प्रत्यचा को कान पर्यन्त खींचा ॥२॥ गुटका में 'आजु सबहि हठि मार श्रोही पाठ है। सर-समूह सो छाड़इ लागा । जनु सपच्छ धावहिं बहु नागा । जहँ तहँ परत देखि अहिबानर । सनमुख होइ न सके तेहि अवसर ॥३॥ वह समूह बाणों को छोड़ने लगा, वे ऐसे मालूम होते हैं मानों बहुत, से पक्षधारा साँप । ! ११४