पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/९८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

९१२ रामचरित मानस । चाहता है ! पवनकुमार ने जा कर मस्तक नवाया, वह रामचन्द्रजी के गुणे की कथा कहने लगा॥२॥ होत महा रन रावन रामहि । जितिहहिं राम न संसय या महि । इहाँ आये में देखउँ माई । ज्ञान-दृष्टि-बल माहि अधिकाई ॥३॥ रविण और रामचन्द्रजी का घोर युद्ध हो रहा है और रामचन्द्रजी जीतेंगे इसमें संदेह नहीं है । हे भाई! मैं यहाँ से देखता हूँ, मुझे शानरष्टि का अधिक बल है ॥ ३॥ मैं यहाँ से देखता हूँ, इस बात का समर्थन युति से करना कि शानदृष्टि का मुझे बल है 'कन्यलिग अलंकार' है। माँगा जल तेहि दीन्ह कसंडल । कह कपि नहिँ अघाउँ थोरे जल ॥ सर मज्जन करि आतुर आबहु । दीछा देउँ ज्ञान जेहि पावहु ॥४॥ पीने के लिए जल माँगा उसने कमण्डलु दिया, हनूमानजी ने कहा मैं थोड़े जल से न अघाऊँगा । कपटी राक्षस ने कहा-तालाब में स्नान (जल पान) कर के शीव आओ, मैं तुम्हें मन्त्रोपदेश कर दूं जिससे (मेरी तरह तुम को भी) शान प्राप्त हो जाय ॥४॥ दो०-सर पैठत कपि-पद-गहा, मकरी तब अकुलान । मारी सो धरि दिव्य-तनु, चली गगन चढ़ि जान ॥३७॥ तब तालाब में पैठते ही मगरी उतावली से हनूमानजी के पैर को पकड़ लिया। उन्होंने मार डाला, वह दिव्य शरीर धारण करके विमान पर चढ़कर आकाश की ओर चली ॥७॥ पाँव पकड़ना कारण, मार डालना कार्य दोनों साथ ही हुए 'अक्रमातिशयोक्ति अलंकार' है। कपि तव दरस भइउँ निःपापा । मिटा तात मुनि बर कर सापा ॥ मुनिन होइ यह निलिचर चारा । मानहुँ सत्य बचन कपि मारा ॥१॥ यह श्राकाश-माग से बोली-हे प्रिय वानर ! मैं श्राप के दर्शन से निष्पाप हुई हूँ और मुनिवर का शाप मिट गया है । हे हनूमान ! यह मुनि नहीं; किन्तु घोर राक्षस है, मेरी बात को सच मानिये ॥१॥ केवल दर्शन मात्र से मुनि का शाप मिट जाना 'द्वितीय विशेष अलंकार है। सभा की प्रति में 'मानहु सत्य वचन प्रभु मोरा' पाठ है । उसने शाप की बात इस प्रकार कही कि मैं अप्सरा हूँ और वह गन्धर्व है । हम दोनों इन्द्र को सभा में नाच गान करते थे, उस समय वहाँ दुर्वासा ऋषि श्राये । हम लोगों के नृत्य और गान पर सारी सभा वाह वाह कर उठी; किन्तु दुर्वासा कुछ-भी-लभ न हुए । उनकी अनभिक्षता अनुमान हम दोनों हँस पड़े। उन्हों ने ऋद्ध हो कर मुझे मकरी होने की तथा गन्धर्व को राक्षस होने का शाप दिया। पीछे प्रार्थना करने पर उदार बतलाया कि त्रेतायुग में ईश्वरावतार होगा, उनके दूत वानरराज हनूमान हाथ मारे जाने से तुम दोनों को पूर्वगति प्राप्त होगी। यह कालनेमि राक्षस वही गन्धर्व है, रावण की प्रेरणा से श्राप कोंगना चाहता है, इसके धोखे में न आये। के .