पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/९९

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ge रामचरितमानस सरस्वती वर्णन करने में अद्वितीय और आदर के योग्य है, किन्तु उन्हें कथन के अयोग्य ठहरा कर उनके सम्बन्ध से सरयूनदी की अतिशय महिमा प्रकट करना 'सम्बन्धातिशयोक्ति अलंकार है। राम धामदा पुरी सुहावनि । लोक समस्त विदित अति पावनि चारि खानि जग जीव अपारा । अवध तजे तन नहिँ संसार ॥२॥ रामचन्द्रजी के धाम ( वैकुण्ठ ) को देनेवाली यह मुहावनी पुरी अत्यन्त पवित्र और सम्पूर्ण लोकों में विख्यात है। संसार में चार प्रकार के अपार जीव हैं, अयोध्याजी में शरीर तजन से वे संसार में फिर नहीं पाते ॥२॥ "जीवों की उत्पत्ति की चार खाने हैं, स्वेदज, अण्डज, उद्भिद और जरायुज । सभा की प्रति में 'लोक समस्त विदित जग पावनि' पाठ है। सब विधि पुरी मनोहर जानी। सकल सिद्धि प्रद मङ्गल खानी ॥ बिमल कथा कर कीन्ह अरम्मा । सुनत नसाहिँ काम मद दम्भा ॥३॥ सम्पूर्ण सिद्धियों को देनेवाली, महल की खानि और सब तरह से मनोहर पुरी समझ कर निर्मल कथा का प्रारम्भ किया है, जिसके सुनने से काम, मद और पाखण्ड नष्ट हो जाते हैं ॥३॥ राम-कथा कारण है, उसके सुनते ही कोम-मद-दम्म का नाशरूपी कार्य तुरन्त होना 'चपलातिशयोक्ति अलंकार, है। रामचरितमानस एहि नामा। सुनत सवन पाइय विखामा ॥ मन करि विषय अनल बन जरई । होइ सुखी जौँ एहि सर परई ॥४॥ इसका नाम रामचरितमानस है। जिसको सुनते ही कानों को आनन्द मिलता है। मनरूपी हाथी विषयरूपी जद्गल की आग में जलता हुआ यदि इस सरोवर में आ पड़े तो वह सुखी हो जाता है ॥४॥ रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ सम्भु सुहावन पावन । त्रिविध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालिकुलि कलुष नसावन ॥५॥ मुनियों को अच्छा लगनेवाला, पवित्र, सुहावना रामचरितमानस शिवजी ने बनाया। यह तीनों प्रकार के दोष, दुःख और दरिद्रता का नाश करनेवाला है, कलियुग की कुरीति [पाजीपन तथा सम्पूर्ण पापों का संहार करनेवाला है ॥५॥ त्रिताप, दु:ख, दरिद्र, कलि की कुचाल और पाप सश को एक साथ हो रामचरित- मानस नए करता है । यह मनोरजन वर्णन 'सहोकि अलंकार है।। रचि महेस निज मानस राखा । पाइ सुसमउ सिवा सन शाखा ॥ तातें रामचरितमानस बर । धरेउ नाम हिय हेरि हरषि हर ॥६॥ शिवजी ने इसकी रचना करके अपने मन में रख लिया था और अच्छा समय पाकर