पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/९९३

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रामचरित मानस । . बहु बिधि साचत सोचबिमोचन । स्त्रवत सलिल राजिव-दल लोचन । उमा एक अखंड रघुराई। नर-गति भगत-कृपाल देखाई १६॥ सोच को छुड़ानेवाले बहुत तरह से सोच कर रहे हैं, उनके कमल पत्र के समान नेत्रों से आँसू बह रहा है। शिवजी कहते हैं-हे उमा! रघुनाथजी अधितीय और निर्विघ्न हैं, उन्हों ने मनुष्य की चाल एवम् माल-वत्सलता दिखाई है ॥8॥ नरगति दिखाना यह कि आपदग्रस्त होने पर मनुष्य इसी तरह प्रलाप करते हैं। भक्तवत्सलता लक्ष्मणजी के दुःख से आप अधीर हो गये हैं। ला०-प्रभु प्रलाप सुनि कान, बिकल भये वानर निकर ॥ आइ गयउ हनुमान, जिमि करुना महँ बीररस ॥६॥ प्रभु रामचन्द्रजी का प्रलाप (प्रलापोऽनर्थकंवचः इत्यरमर:) सुन कर समस्त बन्दर व्याकुल हो गये। उसी समय हनूमानजी ऐसे आ गये जैसे करुणा में वीरस आ गया है॥ ११ ॥ चौ०-हरणि राम अँटेउ हनुमाना। अतिकृतज्ञ प्रभु परम-सुजाना । तुरत बैद तक कीव्हि उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई ॥१॥ परम सुजान प्रभु रामचन्द्रजी बड़े ही कृतज्ञ (किये हुए उपकार को माननेवाले ) हैं, प्रसश हो कर हनूमानजी से मिले । तब वैध ने तुरन्त उपाय किया और लक्ष्मणजी हर्षित हो कर उठ बैठे ॥१॥ हृदय लाइभैंटेउ प्रभु शाता। हरः सकल भालु कपि-नातो॥ कपि पुनि बैद तहाँ पहुँचावा । जेहि विधि तबहिं ताहि लेइ आवा॥२॥ प्रभु रामचन्द्रजी भाई को हृदयाले लगा कर मिले, समस्त भालू-बन्दरों को समुदाय आनन्दित हुा । फिर हनूमानजी सुषेण वैध को जिस तरह पहले ले आये थे उसी तरह उसे लङ्का में पहुंचा दिया ॥२॥ यह वृत्तान्त दसानन सुनेऊ । अति विषादपुनि पुनि सिर धुनेऊ । व्याकुल कुरूमकरन पहि आवा। बिबिध जतन करि ताहि जगावा॥३॥ यह समाचार रावण ने सुना, अत्यन्त खेद से वह वार बार अपना सिर पीटने लगा। घबराहट से कुम्भकर्ण के पास आया और अनेक प्रकार का यत्न करके उसे जगाया ॥३॥ जागा निसिचर देखिय कैसा । मानहुँ काल देह धरि बैसा । कुम्भकरन बूझो कहु भाई । काहे तव मुख रहेउ • जागने पर वह राक्षस कैसा देख पड़ता है, मानो शरीर धारण कर के काल बैदा हो । कुम्भकर्ण ने पूछा-कहो भाई ! तुम्हारे मुख काहे सूख रहे हैं ? ॥ ४॥ सुखाई ॥