पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१००

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- - कन्या सब लक्षणों से सम्पन्न है। यह अपने पति को सदा प्यारी होगी। म) इसका सुहाग सदा अचल रहेगा और इससे इसके माता-पिता यश पायेंगे। ॐ होइहि पूज्य सकल जग माहीं ॐ एहि सेवत कछु दुर्लभ नाहीं हैं । गुम्वा एहि कर नाम सुमिरि संसारा ॐ तिय चढ़िहहिं पतिव्रत असिधारा राम है यह सारे जगत् में पूज्य होगी और इसकी सेवा करने से कुछ भी दुर्लभ एम् न होगा। संसार में स्त्रियाँ इसका नाम स्मरण करके पातिव्रत-धर्म रूपी तलवार है की धार पर चढ़ जायँगी ।। सैल सुलच्छनि सुता तुम्हारी ॐ सुनहु जे अव अवगुन दुइचारी अगुन अमान मातु पितु हीना ॐ उदासीन सव संसय छीना' हे पर्वतराज ! तुम्हारी पुत्री सुन्दर लक्षणों वाली है। अव उसमें दो-चार अवगुण हैं, उन्हें भी सुन लो । उगुणहीन, मानहीन, माता-पिता-विहीन, उदा सीन समस्त सन्देहों से रहित ( लापरवाह ), सो जोगी जटिल अकाम मन नगन अमंगल बेष ।। | " अस स्वामी एहि कहँ मिलिहि परी हस्त असि रेख६७ योगी, जटाधारी, निष्काम-हृदय, नङ्गा और अमंगल वेष वाला पति इसको मिलेगा, इसके हाथ में ऐसी ही रेखा पड़ी है। सुनि सुनि गिरा सत्य जियँ जानी ॐ दुख दंपतिहिं उमा हरपानी एम) नारदहूँ यह भेदु ल जाना 6 दसा एक समुझव विलगाना एमा ३. मुनि की वाणी सुनकर और उसको हृदय में सत्य जानकर पार्वती के है रामो माता-पिता दोनों को दुःख हुआ; परन्तु पार्वती प्रसन्न हुई। नारदमुनि ने भी यह भेद नहीं जाना; क्योंकि सबकी बाहरी दशा एक-सी होने पर भी भीतर की णमो समझ भिन्न-भिन्न थी। "| सकल सखी गिरिजा गिरि मैना ६ पुलक सरीर भरे जल नैना । 1 एम् होइ न मृषा देवरिधिं भाखा ६ उमा सो बचनु हृदय धरि राखा | सारी सखियाँ, पार्वती, पर्वतराज हिमवान् और मैना सभी के शरीर पुल। कित हो गये और आँखों में जल भर आये। देवर्षि नारद ने जो कहा है, वह झूठ ॐ नहीं हो सकता; यह बात पार्वती ने हृदय में धारण कर ली। - . १. क्षीण, रहित । == = = = = = हि ।