पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१०१

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ॐ ६८ . मु लभ & ॐ उपजेउ सिव पद कमल सनेहू ॐ मिलन कठिन मन भी सन्देहू । राम जानि कुअवसरु प्रीति दुराई के सखी उठेंग' बैठि पुनि जाई (राम) - उन्हें शिवजी के चरण-कसलों में स्नेह उत्पन्न हो आया; परंतु मन में यह है राम्रो सन्देह हुआ कि उनका मिलना कठिन है। अवसर ठीक न जानकर पार्वती ने है वह प्रीति छिपा ली और फिर वे सखी की गोद में जाकर बैठ गईं। सुमो झूठ न होइ देवरिषि बानी की सोचहिं दंपति : सखी सयानी है उर धरि धीर कहइ गिरिराऊ ॐ कहहु नाथ का करिअ उपाऊ देवर्षि नारद की वाणी झूठी न होगी, हिमवान् और उसकी स्त्री मैना और हैं * पार्वती की चतुर सखियाँ चिन्ता करने लगीं । हृदय में धीरज धरकर हिमवान् ने * कहा--हे नाथ ! कहिये, क्या उपाय किया जाय ? हो । कहूं मुनीस हिमवंत सुनु जो बिधि लिखा लिलार। 2 देव दनुज नर नाग मुनि कोउ न मेटानिहार ॥६८॥ ॐ ', मुनीश्वर नारदजी ने कहा--हे हिमवान्, सुनो । जो बात ब्रह्मा ने माथे । में लिख दी है, देवता, दानव, मनुष्य, नाग और मुनि कोई भी उसको मिटा एम) नहीं सकता। तदपि एक मैं कहउँ उचाई को होइ करइ ज देउ संहाई को जस बर मैं बरनेऊँ तुम्ह पाहीं ॐ मिलिहि उमहिं तस संसय नाहीं तो भी मैं एक उपाय बताता हूँ। जो प्रारब्ध सहायता करे, तो वह सिद्ध राम के हो सकता है। जैसा मैंने तुम्हारे सामने कहा, वैसा ही वर उमा को मिलेगा, इसमें सन्देह नहीं है। हैं जे जे बर के दोष वखाने % ते सब सिव पहिं मैं अनुमाने के राम जौं विबाहु संकर सन होई ॐ दोषउ गुन सम कह सब कोई राम्रो है। मैंने वर के जो-जो दोष बताये हैं, मैं अनुमान से कहता हूँ, वे सभी शिवजी को रामो में हैं। यदि शिवजी के साथ विवाह हो जाय, तो दोषों को भी सब लोग गुण (सु) के समान ही कहेंगे । तुम जौं अहि सेज सयन हरि करहीं ॐ बुध कछु तिनकर दोषु न धरहीं । ॐ भानु कृसानु सर्व रस खाहीं ॐ तिन्ह कहँ मंद' कहत कोउ नाहीं । * १. गोद । २. मस्तक, ललाट । ३. बुरा ।