पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१०३

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ॐ १०० % छ भन . ॐ को भी मिटा सकते हैं । यद्यपि संसार में वर अनेक हैं, पर इसके लिये शिवजी के को छोड़कर दूसरा वर नहीं है। ऊँ बर दायक प्रनतारति भजन ॐ कृपा सिन्धु सेवक मन रंजन के रामो इच्छित फल विनु सिव अवराधे ॐ लहिअ न कोटि जोग जप साधे राम्। ॐ शिवजी वर देने वाले, शरणागतों के दुःख-नाशक, दया-सागर और ॐ गुण सेवकों के मन को प्रसन्न करने वाले हैं। शिवजी की आराधना किये बिना करोड़ों ॐ योग और जप करने पर भी वाञ्छित फल नहीं मिलता। वा , अस कहि नारद सुमिरि हरि गिरिजहिं दीन्ह असीस। * 18 होइहि यह कल्यान अब संसय तजहु गिरीस ७०।। ) ॐ ऐसा कहकर और भगवान का स्मरण करके नारदजी ने पार्वती को राम आशीर्वाद दिया और कहा---हे हिमवान्, तुम सन्देह दूर करों, अब इसको ॐ कल्याण होगा। रा) कहि अस ब्रह्म भवन मुनि गयऊ ॐ आगिल चरित सुनहु जस भयऊ के पतिहि एकांत पाइ कह मैना ॐ नाथ न मैं समुझे मुनि बैना यों कहकर सुनि ब्रह्मलोक को चले गये। अब जो कुछ चरित्र आगे हुआ, * उसे सुनो। पति को एकान्त में पाकर मैना ने कहा—नाथ, मैंने मुनि की बात नहीं समझी।। * जौं घरु बरु कुलु होइ अनूपा ॐ करिअ बिबाहु सुता अनुरूप । न त कुन्या । बरु रहउ कुआरी ॐ कंत उमा मम प्रान पिआरी जो हमारी कन्या के अनुकूल घर, वर और कुल उत्तम हो तो विवाह राम) | कीजिये । नहीं तो कन्या चाहे कुमारी ही रहे। हे स्वामिन् , पार्वती मुझको कै (राम) प्राण के समान प्यारी है। ॐ जन मिलिहि बरु गिरिजहि जोग ॐ गिरि जड़ सहज कहिहि सब लोगू तुम सोइ विचारि पति करहु विवाहू ॐ जेहि न वहोरि होइ उर दाहू यदि पार्वती के योग्य वर न मिला, तो सब लोग कहेंगे कि पर्वत स्वभाव ५ ) ही से जड़ ( मूर्ख ) होता है। हे नाथ ! इस बात को विचारकर ही विवाह । । कीजिए, जिसमें फिर पीछे हृदय में संताप न हो। १. फिर ।