पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१०५

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डै १०२ ८ ८८ ८ .. वह बार बार उसे गले से लगाने लगीं। अधिक प्रेम से उनका गला भर के तिले आया, उनसे कुछ कहा नहीं जाता। सब कुछ जानने वाली जगत् की माता । भवानी ( अपनी ) माता को सुख देने के लिये कोमल वाणी से बोलींराम सुनहि मातु मैं दीख अस सपन सुनावउँ तोहिं । लामो । सुन्दर गौर सुविप्रवर अस उपदेसेउ मोहिं ॥७२॥ | माँ, सुन ! मैं तुझे सुनाती हूँ। मैंने ऐसा स्वप्न देखा है कि मुझे एक है। सुन्दर गौरवण ब्राह्मण ने ऐसा उपदेश दिया : करहि जाइ त सैलकुमारी के नारद कहा सो सत्य विचारी है। रामो मातु पितहि पुनि यह मत भावा ॐ तषु सुखप्रद, दुख दोष नसावा “हे पार्वती ! जाकर तप कर । नारदजी ने जो कहा है, उसे सत्य है राम) समझ। फिर यह बात तेरे माता-पिता को भी अच्छी लगी है। तप सुख देने राम) वाला, दुःख और दोष को मिटाने वाला है। तपवलं रचइ प्रपंचु विधाता की तपबल बिष्नु सकल जग त्राता तपबल संभु करहिं संघारा ॐ तपबल सेषु धरइ महि भारा ..: तप ही के बल से ब्रह्मा संसार को रचते हैं और तप ही के बल से विष्णु सारे जगत् का पालन करते हैं । तप ही के बल से शंभु जगत् का संहार करते हैं * है और तप ही के बल से शेषजी पृथ्वी का भार धारण करते हैं। तप अधार सब सृष्टि भवानी ॐ करहि जाइ तषु अस जिय जानी सुनत वचन विसमित महतारी के सपन सुनायउ गिरिहि हँकारी हे भवानी ! सारी सृष्टि तप ही के सहारे है। ऐसा जी में जानकर तू जा * कर तप कर”। यह बात सुनकर पार्वती की माता को बड़ा अचरज हुआ । उसने कै मी हिमवान् को बुलाकर बह स्वप्न सुनाया ।। । मातु पितहि बहु बिधि समुझाई ॐ चली उमा तप हित हरषाई छु राम प्रिय परिवार पिता अरु माता के भए विकल मुख व न बाता नाम है. माता-पिता को बहुत तरह से समझाकर पार्वती तप करने के लिये राम हर्ष के साथ चलीं। प्यारे कुटुम्बीजन, माता और पिता सब बहुत विकल हो । छू गये । किसी के मुंह से बात नहीं निकलती। ॐ १. बुलाकर ।