पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१०७

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७y"७७७ ७७ रामाणमा राम राम राम राम राम ॐ १०४ छ भन. * असह्य क्लेशों को त्याग दे । अब तुझे शिवजी मिलेंगे। म) अस तपु काहुँ न कीन्ह भवानी ॐ भए अनेक धीर मुनिः ग्यानी ॐ अव उर धरहु ब्रह्म बर बानी ॐ सत्य सदा संतत सुचि जानी हैं हे भवानी ! धीर मुनि और ज्ञानी बहुत हुए, पर ऐसा ( कठोर ) तप किसी गुमो ॐ ने नहीं किया । अब तू श्रेष्ठ ब्रह्मा की वाणी को सदा सत्य और निरन्तर पवित्र के ये समझकर अपने हृदय में रखे । ॐ आवहिं पिता बुलावन जवहीं ॐ हठ परिहरि घर जायहु तवहीं । मिलहिं तुम्हहिं जब सप्त रिषीसा ॐ जानेहु तव प्रमान बागीसा । | जब तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आये, तब तुम हठ छोड़कर घर चली जाना। हैं और जब तुमको सप्तर्षि मिलें, तब तुम मेरी वाणी को सत्य समझना ।” भी सुनत गिरा विधि गगन वखानी ॐ पुलक गात गिरिजा हरषानी ॐ उमा चरित सुंदर मैं गावा ॐ सुनहु संभु कर चरित सुहावा आकाश से कही हुई ब्रह्मा की वाणी को सुनते ही पार्वती के रोम खड़े ॐ हो गये और वे बहुत प्रसन्न हूँ । याज्ञवल्क्य जी भरद्वाजजी से कहने लगे मैंने छ एम पार्वती का सुन्दर चरित सुना दिया, अब शिवजी की सुहावना चरित सुनो। * जब तें सती जाइ तनु त्यागा ॐ तब तें सिव मन भयउ विरागा * जपहिं सदा रघुनायक नामा ३ जहँ तहँ सुनहिं राम गुन ग्रामा । जब से सती ने जाकर शरीर छोड़ा, तब से शिवजी के मन में वैराग्य हो ॐ गया। वे सदा राम-नाम जपने लगे और जहाँ-तहाँ रामचन्द्रजी के गुणों के वर्णन । सुनने लगे। - चिदानंद सुखधाम सिव बिगत मोह मद काम्।। एम् l बिचरहिंमहिधरिहृदयहरिसकललोकअभिरामा७५ । चिदानन्द, सुख के धाम, मोह, मद और काम से रहित, सारे लोकों को भी आनन्द देनेवाले भगवान् को हृदय में धरकर शिवजी पृथ्वी पर विचरने लगे। कतहुँ मुनिन्ह उपदेसहिं ग्याना ॐ कतहुँ राम गुन करहिं वखाना ॐ जदपि अकाम तदपि भगवाना ॐ भगत विरह दुख दुखित सुजाना । १. कहीं। |