पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१०८

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वे कहीं मुनियों को ज्ञान का उपदेश देते और कहीं रामचन्द्रजी के गुणों । म का वर्णन करते थे। यद्यपि भगवान् शिवजी कामना-रहित हैं, पर तो भी भक्त ॐ ( पार्वती ) के विरह-दुःख से दुःखित हैं। । लामो एहि बिधि गयउ काल बहु बीती ॐ नित नाव होइ राम पद प्रीती ३ ॐ नेमु प्रेणु संकर कर देखा ॐ अविचल हृदयँ भगति के रेखा | इस प्रकार बहुत समय बीत गया। रामचन्द्रजी के चरणों की नित्य-नई ॐ ॐ प्रीति होने लगी। जब रामचन्द्रजी ने शिवजी का नेम, प्रेम और उनके हृदय में भक्ति की अटल छाप देखी प्रगटे राम कृतग्य कृपाला ॐ रूप सील निधि तेज विसाला वहु प्रकार संकरहिं सराहा ॐ तुम्ह विनु अस व्रत को निरवाहा ६ (राम) तब वे कृपालु और उपकार को मानने वाले, रूप और शील के भण्डार ॐ और महान तेजस्वी रामचन्द्रजी प्रकट हुए। उन्होंने बहुत तरह से शिवजी की । राम्रो बड़ाई की और कहा- तुम्हारे बिना ऐसा व्रत कौन निबाह सकता है ? ! बहु बिधि राम सिवहिं ससुझावा झै पारवती कर जनमु सुनावा * अति पुनीत गिरिजा के करनी ॐ बिस्तर' सहित कृपानिधि वरनी रामचन्द्रजी ने बहुत तरह से शिवजी को समझाया और पार्वती का जन्म सुनाया। कृपानिधि रामचन्द्रजी ने पार्वती की अति पवित्र करनी का वर्णन तीन विस्तारपूर्वक किया। | - अब बिनती सम सुलहु सिव जौं सो पर निज नेह। युवा जाइ बिबाहहु सैलजहिं यह मोहिं माँगे देहु ॥६॥ उन्होंने शिवजी से कहा- हे शिव ! यदि मुझ पर आपका स्नेह है, तो आप अब मेरी विनती सुनें। आप मुझे यही साँगे दीजिये कि जाकर पार्वती के साथ ब्याह कर लें ।। कह सिव जदपि उचित अस नाहीं ॐ नाथ बचन पुनि मेटि न जाहीं सिर धरि अायसु करिअ तुम्हारा ॐ परम धरमु यह नाथ हमारा शिवजी ने कहा—यद्यपि ऐसा उचित नहीं है, तो भी प्रभु की बात टाली । १. विस्तार ।