पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/११३

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ॐ ११.०' मा टिभन्नास है. यदि आपके हृदय में बहुत ही हठ है और विवाह की बातचीत किये बिना है से रहा नहीं जाता, तो संसार में कन्या और वर बहुत हैं। खेलवाड़ करने वालों को आलस्यं भी नहीं होता। म) जनम कोटि लगि गरि हमारी ॐ बरौं संभु न तु रहीं कुआँरी तजौं न नारद कर उपदेसू ॐ आपु कहहिं सत बार महेसू राम : मेरा तो करोड़ जन्मों तक यही छ है कि, “या तो शम्भु को बरूगी है और नहीं तो कुमारी रहुँगी ।” स्वयं शिवजी. सौ बार कहें, तो भी नारदजी के उपदेश को न छोड़ेंगी । * मैं . प प कहै जगदम्बा ॐ तुम्ह गृह गवनहु भयउ विलंबा । देखि प्रेम बोले मुनि ग्यानी ॐ जय जय जगदम्बिके भवानी ॐ जगन्माता ( पार्वती ) ने कहा मैं आपके पाँव पड़ती हैं। आप अपने * घर जाइये, बहुत देर हो गई ।.( भवानी का शिवजी में ऐसा ) प्रेम देखकर ज्ञानी के ) मुनि बोले-हे भवानी ! हे जगन्माता ! आपकी जय हो ! जय हो !! हैं तुम्ह माया भगवान सिव सकल जगत पितु मातु।। नाइ चरन सिरु मुनि चले पुनि पुनि हरषतु गातु।८१॥ * आप माया हैं और शिवजी भगवान हैं। दोनों समस्त जगत् के माताके पिता हो । ( इतना कह ) पार्वती के चरणों में सिर नवाकर बारम्बार पुलकित राम) होते हुये मुनि चल दिये ।। जाइ मुनिन्हें हिमवंत : पठाए ॐ करि बिनती गिरिजहिं गृह ल्याए बहुरि सप्तरिघि सिव पहिं जाई ॐ कथा उमा के सकल सुनाई। * मुनि ने जाकर हिमवान् को भेजा और वे विनती करके पार्वती को एम) घर ले आये। फिर उन सात ऋषियों ने शिवजी के पास जाकर उसी की सारी । छू कथा कह सुनाई। यू भए मगच सिव सुनत सनेहा ॐ हरषि सप्तरिषि गवने गेहा । मनु थिरु करि तव संभु सुजाना ॐ लगे करन रघुनायकं ध्याना * पार्वती की प्रीति सुनकर शिवजी, बहुत प्रसन्न हुए । सप्तर्षि हर्षित होकर के से अपने घर चले गये । तंब सुजान शिवजी मन को स्थिर करके रघुनाथजी को मि) * ध्यान करने लगे। |