पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/११८

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ॐ शिवजी को देखकर कामदेव डरो और सारा संसार फिर जैसा का तैसा स्थिर हो रामो गया । भए तुरत जग जीव सुखारे 6 जिमि मद उतरि गएँ मतवारे रुद्रहिं देखि मदन भय साना के दुराधर्ष दुर्गम भरवाना | तुरन्त जग के सब जीव सुखी हो गये, जैसे मतवाले मद उतर जाने पर सुखी हो जाते हैं । रुद्र को देखकर कामदेव भयभीत हो गया; क्योंकि शिवजी को बड़े ही दुराधर्ष ( अपराजेय ) और दुर्गम हैं। फिरत लाज कछु कहि नहिं जाई छ मरन ठानि मन रचेसि उचाई प्रगटेसि तुरत रुचिर रितुराजा कुसुमित नव तरु राज विराजा • लौट जाने में लज्जा है, कुछ कहा नहीं जाता { क्या करे, क्या न करे ? ) (अन्त में) मनमें मरने का निश्चय करके उसने उपाय रचा। तुरंत ही उसने सुन्दर । ऋतुराज वसंत को प्रकट किया। नये फूले हुए वृक्षों की पाँते सुशोभित हो गई। बन . उपबन बापिका तड़ागा ॐ परम सुभग सव दिसा विभागा राम् जहँ तहँ जनु उमगत अनुरागा ॐ देखि मुहु मन मनसिज जागा | वन, उपवन, बावली, सरोवर और सब दिशायें बड़ी ही सुन्दर हो गयीं। जहाँ-तहाँ मानो प्रेम उमड़ रहा है, जिसे देखकर मरे मन में भी कामदेव जाग उठा। छन्द-जाराइ सनोभव एह सुन बन भगता नपरे ही सीतल सुगंध सुसंद मारुत मदन अनल सखा सही। बिकसे सरन्हि बहु कंज गुंजत पुंज मंजुल सधुरा । कलहंस पिक सुक सरस रव करि गल नाचहिं अपछर ।। मरे हुए मन में भी कामदेव जागने लगा। वन की शोभा ही नहीं जा सकती । कामरूपी अग्नि को सच्चा मित्र शीतल, सन्द और सुगन्धित पवन चलने लगा। सरोवरों में अनेक प्रकार के कमल खिल गये, जिन पर सुन्दर भौरा के कुण्ड के झुण्ड गुजार करने लगे । राजहंस, कोयल और तोते रसीली बोली बोलने लगे और अप्सरायें गा-गा कर नाचने लगीं। |