पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/११९

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। ११६ छ न । है । सकल कला करि कोटि बिधिहारेउ सेन समेत् । एम् = चली न अचल समाधि सिवकोपेउ हृदय-निकेत८६ मा कामदेव अपनी सेना समेत करोड़ों तरह की सब कलायें (उपाय) करके हार है। गया, पर शिवजी की अचल समाधि न डिगी। तब कामदेव कुपित हो उठा। देखि रसाल बिटप वर साखा ॐ तेहि पर चढ़ेउ मदन मन माखा रामो सुमन चाप निज सर संन्धाने ॐ अति रिसि ताकि स्रवन लगि ताने आम के वृक्ष की एक सुन्दर डाली देखकर कामदेव खिसियाकर उस पर चढ़ गया। उसने फूलों के धनुष पर अपने बाण चढ़ाये और अत्यन्त क्रोध से तोककर उन्हें कान तक तान लिया। : : :: : : छाँट विषम बान उर्...लागे छुटि समाधि सुम्भु तब जागे के भयउ ईस मन छोभु विसेखी ॐ नयन उघारि सकल दिसि देखी ( कामदेव ने ) तीक्ष्ण पाँच बाण मारे, वे शिवजी के हृदय में लगे, तब म उनकी समाधि भंग हुई और वे जाग पड़े। शिवजी के मन में बहुत क्षोभ हुआ । उन्होंने आँखें खोलकर सब और देखी } { द्वितीय विभावना अलंकार ] सौरभ' पल्लव मदन विलोका के भयउ कोप कंपेउ त्रय लोका मो तवे सिव तीसरं नयन उघारा ॐ चितवत काम भयउ जरि छारो. उन्होंने आम के पत्तों में कामदेव को देखा और देखते ही क्रोध हुआ, जिससे कुछ राम तीनों लोक काँप उठे। तब शिवजी ने तीसरा नेत्र खोला और देखते ही कामदेव (राम) जलकर भस्म हो गया। राम हाहाकार भयउ जग भारी डरपे : सुर भए असुर सुखारी राम * समुझि कामसुख सोचहिं भोगी ॐ भए अकंटक साधक जोगी । जगत् में बड़ा हाहाकार मच गया। देवता डर गये और दैत्य सुखी हुए। * भोग्नै लोग कामदेव के सुख़ को याद करके चिन्ता करने लगे और साधक योगी । बेखटके हो गये। ) छन्द-जोगी अर्कटक भए पति गति सुनतिरति मुरुछित भई। हूँ, रोदति बदति बहु भाँति करुना करति संकर पहिं गई ॥ ॐ १. अमि। २. कामदेव 1.