पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१२०

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- अति प्रेम करि विनती बिबिध बिधि जोरि कर सनसुख रही है। । प्रभु आषुतोष कृपाल सिव अबला निरखि बोले सही ॥ | योगी अकंटक हो गये, कामदेव की स्त्री रति अपने पति की यह दशा सुनते हो ही मूच्छित हो गई। वह रोती-चिल्लाती, विलाप करती और अनेक प्रकार से करुणः । (राम) करती शिवजी के पास गई। बड़े ही प्रेम से हाथ जोड़ और अनेक प्रकार से विनती में) करके वह सामने खड़ी हो गई। शीघ्र प्रसन्न होने वाले, कृपालु शिवजी स्त्री को यो देखकर सत्य वचन बोले अब तें रति तव नाथ कर होइहि नास अनंग। के बिनु बटु'ब्यापिहि सवहि पुनि सुनु निज मिलन प्रसंग। हे रति ! अब से तेरे पति का नाम अनंग होगा। यह विना शरीर ही के सबको व्यापेगा । अब तू अपने स्वामी से मिलने की बात सुन । सुमो जब जदुबंस कृष्न अवतारा $ होइहि हर महा महिमारा कृष्नतनय होइहि. पति तोरा ॐ बचन अन्यथा होइ न मोरा ... जब पृथ्वी के बढ़े हुए भार को हरने के लिये यदुवंश में श्रीकृष्णजी का अवतार होगा, तब उनका पुत्र ( प्रद्युम्न ) तेरो पति होगा। मेरा वचन मिथ्या एम नहीं हो सकता। रति गवनी सुनि संकर बानी ॐ कथा अपर अव कहीं वखानी देवन्ह समाचार सब पाए ॐ ब्रह्मादिक वैकुण्ठ सिधाए शिवजी की बात सुनकर रति चली गई। अब आगे की कथा कहता हूँ। कैं जब यह समाचार सब देवताओं को मालूम हुआ, तब ब्रह्मा आदि देवगण वैकुण्ठ म) को गये। | सब सुर बिष्नु बिरंचि समेता ॐ गए जहाँ सित्र कृपानिकेतो राम् पृथक पृथक तिन्ह कीन्ह प्रसंसा ॐ भए प्रसन्न चंद्र अवतंसा तब वहाँ से विष्णु और ब्रह्मा-सहित सब देवगण वहाँ गये, जहाँ कृपा के । घर शिवजी थे। उन्होंने शिवजी की अलग-अलग स्तुति की । चन्द्रशेखर शिवजी । | प्रसन्न हुए । १. शरीर ।