पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

। ११६ च मन । ॐ बोले : कृपासिंधु वृषकेतू ॐ कहहु अमर' आए केहि हेतू राम्रो कुह बिधि तुम्ह प्रभु अंतरजामी ॐ तदपि भगति बस बिनवौं स्वामी ॐ कृपासागर शिवजी कहने लगे--हे देवताओ ! कहो, किंसलिये आये हो ? ब्रह्माजी बोले-हे प्रभु ! आप अन्तर्यामी हैं, तथापि हे स्वामी ! भक्तिवश में । | आपसे विनंती करता हूँ।" कू । सकल सुरन्ह के हृद्य अस संकर परम उछाहु । के हो । निज नयनन्हि देखा चहहिं नाथ तुम्हार बिबाहु॥८॥ तै हे शंकर ! सब देवताओं के मन में ऐसा उत्साह है कि हे नाथ ! वे अपनी ऊँ आँखों से आपका विवाह देखना चाहते हैं। .....:....::...: : यह उत्सव देखि भरि लोचन ॐ सोइ कछु करहु मदन मंद मोचन काम जारि रति कहँ बर दीन्हा ॐ कृपासिंधु यंह, अति भल कीन्हा | हे कामदेव के मद को चूर करने वाले ! आप ऐसा कीजिये, जिससे हम लोग इस उत्सव को आँख भरकर देख लें । हे कृपासागर ! कामदेव को भस्म । करके आपने रति को, जो वरदान दिया, सों बहुत ही अच्छा किया। सासति' करि पुनि करहिं पंसाऊ ॐ नाथ प्रभुन्ह कर सहज सुभाऊ पारवती तपु कीन्ह अंपारा के करहु तासु अब 'अंगीकारा, | हे नाथ ! श्रेष्ठ स्वामियों का सहज स्वभाव ही है कि पहले दण्ड देकर फिर यो वे कृपा किया करते हैं। पार्वती ने अपार तप किया है; अब उन्हें अंगीकार राम के कीजिये । ..:: . राम) सुनि विधि विनय समुझि प्रभु बानी ॐ ऐसई होउ कहा सुख मानी छै तव देवन्ह दुदुभी बजाई के बरषि सुमन जय जय सुर साई ए ., ब्रह्मा की बात सुनकर और प्रभु ( रामचन्द्रजी के वचनों को ) याद करके। शिवजी ने सुख से कहा-ऐसा ही हो । इतना सुनते ही देवताओं ने नगाड़े बजाये और फूलों की वर्षा करके वे कहने लगे- हे देवताओं के स्वामी ! तुम्हारी ॐ जय हो, जय हो। । अवसरु जानिः सप्तरिषि आए ॐ तुरतहि बिधि गिरिभवन पठाए । * प्रथम गए जहँ रहीं भवानी $ बोले मधुर बचन छल। १. देवता । २. नाराजु । ३. स्वामी । | राम -राम-*-राम -राम -राम -राम -राम- राम- राम-*-म -एम -रामो । । । । ।