पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१२२

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| #. बालक्लाङ, ११९ । उचित अवसर जानकर सप्तर्षि आये और ब्रह्मा ने तुरन्त ही उन्हें हिमाचल के घर भेजा । वे पहले वहाँ गये, जहाँ पार्वती थीं । वे उनसे छल से भरे हुये * ( दिल्लगी के ) मीठे वचन बोलेरामे कहा हमार न सुनेहु तव नारद के उपदेस । - अब भी झूठ तुम्हार पन जारेउ झास सहेस ॥८६॥ नारद की बातों में आकर तुमने उस समय हमारी बात नहीं सुनी । अत्र तो तुम्हारा प्रेण झूठा हो गया, क्योंकि शिवजी ने काम को जल डाला। सुनि बोली मुसकाइ भवानी की उचित कहेहु मुनिवर विग्यानी राम तुम्हरे जाने काम अव जारा ॐ अव लगि सम्भु रहे सविकारा यह सुनकर पार्वती मुस्कराकर बोलीं-हे विज्ञानी मुनीवरो ! आपने ठीक राये ही कहा } अपकी समझ में शिवजी ने कामदेव को अव जलाया है और अब तक बे सविकार ( कामी ) रहे। तुम हमरे जान सदा सिव जोगी ॐ अज अनवद्य अकाम अभोगी * जौं मैं सिव सेयउँ अस जानी ॐ प्रीति समेत करम मन बानी पर हमारी समझ से तो शिवजी सदा से योगी, अजन्मा, निन्दा-रहित, ॐ कामहीन और भोग-हीन हैं और यदि मैंने यही समझकर मन, वचन और कर्म * से प्रेम-सहित शिवजी की सेवा की है, तौ हमार पने सुनहु मुनीसा ॐ करिहहिं सत्य कृपानिधि ईसा तुम्ह जो कहा हर जारेउ मारा ॐ सो अति वड़ अविवेक तुम्हारा राम), तो हे मुनीश्वरो ! सुनिये, कृपासागर शिवजी हमारी प्रतिज्ञा को सत्य क़ करेंगे । आपने जो यह कहा कि शिवजी ने कामदेव को भस्म कर दिया, यह आपका बड़ा भारी अविवेक है। तात अनल' कर सहज सुभाऊ ॐ हिम तेहि निकट जाइ नहिं काऊ ए गए समीप सो अवसि नसाई असि मनमथ' महेस की नाई * हे तात ! अग्नि का तो यह सहज स्वभाव ही है कि पाला उसके पास । कभी जी ही नहीं सकता; और जाने पर तो वह अवश्य ही नष्ट हो जायगा । जिस प्रकार कामदेव महादेवजी के पास जाकर नष्ट हुआ। १. आग । २. कामदेव ।