पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१२३

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| १२० ब्वाई । हिय हरषे मुनि बचन सुनि देखि प्रीति विस्वास । ॐ । एम् 'चले भवानिहिं नाइ सिर गए हिमाचल पास ॥९.०॥ एम् पार्वती की बात सुनकर और उनका प्रेम तथा विश्वास देखकर मुनि हृदय में बड़े प्रसंन्न हुये । फिर वे भवानी को प्रणाम करके चले गये और हिमाचल के पास गये । सब प्रसंग गिरिपतिहिं सुनावा ॐ मदन'दहन सुनि अति दुखु पावा ए बहुरि कहेउ रति कर बरदाना ॐ सुनि हिमवंत बहुत सुखं माना मुनियों ने हिमाचल को सब हाल कह सुनाया। कामदेव के भस्म होने की बात सुनकर हिमाचल बहुत दुःखी हुये । फिर मुनियों ने रति के वरदान की में बात कही । उसे सुनकर हिमवन्त ने बहुत सुख माना। . हृदयँ विचार सम्भु प्रभुताई ॐ सादर : मुनिबर लिए बोलाई राम सुदिन सुनखत सुघरी सोचाई ® बेगि बेद विधि लगन धराई ... शिवजी की प्रभुता को मन में सोचकर हिमाचल ने मुनियों को आदरसहित बुला लिया और उनसे शुभ दिन, शुभ नक्षत्र और शुभ घड़ी सोधवाकर । जल्दी वेद-रीति से लग्न निश्चय करा लिया। पत्री सप्तरिपिन्ह सोइ दीन्ही ॐ गहि पद विनय हिमाचल कीन्ही जाई विधिहि तिन्ह दीन्ह सो पाती ॐ बाँचत प्रीति न हृदय समाती | फिर हिमाचल ने वह लग्न-पत्रिका ऋषियों को दे दी और उनके पाँव एम् पकड़कर विनती की। वह लग्न-पत्रिका उन्होंने ले जाकर ब्रह्मा को दी । उसको ॐ पढ़ते समयं उनके हृदय में प्रेम समांता न था । के लगन वाँचि अज सवहिं सुनाई ॐ हरषे सुनि मुनि सुर समुदाई रामे सुमन बृष्टि नभ बाजन वाजे ॐ मंगल कलस दसहुँ दिसि साजे राम। .. ब्रह्मा ने सबको लग्न पढ़कर सुनाया, तो उसे सुनकर मुनि तथा देवगण राम बहुत ही हर्षित हुये। आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी, बाजे बजने लगे मो. और दशों दिशाओं में मंगल कलश सजा दिये गये। .........* १. कामदेव । |