पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१२५

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हुँदै १२२ काच ना . . । तव विष्णु ने सब दिग्पालों को बुलाकर हँसकर कहा--सब लोग अलग अलग होकर अपने-अपने दल के साथ चलो। वर अनुहारि बरात न भाई की हँसी कहहु पर पुर जाई, राम विष्नु वचन सुनि सुर मुसुकाने की निज निज सेन सहित विलगाने भाई, हम लोगों की यह बरात वर के योग्य नहीं है। पराये गाँव में जा है एम् कर क्या हँसी कराओगे ? विष्णु की बात सुनकर सब देवगण मुस्कुराये और | अपनी-अपनी सेना-सहित अलग-अलग हो गये। । मन ही मन महेस मुसुकाहीं ॐ हरि के व्यंग बचन नहिं जाहीं युवा * अति प्रिय वचन सुनत प्रिय केरे ॐ बृ'गिहिं प्रेरि सकल गन टेरे शिवजी मन ही मन मुस्कुराते हैं कि हंरि की व्यंग्य की बातें ( दिल्लगी) नहीं छूटतीं । अपने प्यारे के बहुत मधुर वचन सुनकर उन्होंने भृङ्गी को भेजकर * अपने सब गणों को बुलवा लिया । | सिव अनुसासन सुनि सव आए ॐ प्रभु पद जलज सीस तिन्ह नाए में हैं नाना वाहन नाना बेषा ॐ बिहँसे सिव समाज निज देखा हूँ शिवजी की आज्ञा सुनते ही सब चले आये और आकर उन्होंने प्रभु के | चरण-कमलों में सिर नवाया। उनकी तरह-तरह की सवारियाँ और तरह-तरह के के राम वेष थे। शिवजी अपने समाज को देखकर हँसे। कोउ मुख हीन विपुल' मुख काहू के बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू । बिपुल नयन कोउ नयन बिहीना ॐ रिष्ट पुष्ट कोउ अति तन खीना . कोई बिना सुख का है और किसी के बहुत-से मुख हैं, कोई बिना हाथ| पाँव का है और किसी के बहुत-से हाथ-पाँव हैं। किसी के बहुत-सी आँखें हैं और किसी के आँखें हैं ही नहीं । कोई बहुत मोटा-ताज़ा है तो कोई बहुत ही दुबलापतला । छंद-तन खीन कोउ अति पीन पावन कोउ अपावन गति धरें | भूषन कराल कपाल कर सब सद्य सोनित तन भरे हैं राम्रो खर स्वान सुअर सुगाल मुख गन बेष अगनित को गर्ने राम्रो बहु जिनिस प्रेत पिसाच जोगि जमात बरनत नांह बने हैं १. बहुत । २. गधा । ३. कुत्तो । ४. सियार ! ५. जाति, क़िस्म । |