पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१२७

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ॐ १२४. चव नस । राम)ॐ जहाँ-तहाँ यथायोग्य उतर गये। उस पुर की सुन्दर शोभा देखकर ब्रह्मा की रा, रचना-चातुरी भी तुच्छ लगती थी। ॐ छंद-लघुलागि विधि की निपुनता अवलोकि पुर सोभा सही। ॐ बन बाग कूप तड़ाग सरिता सुभग सब सक को कही॥ युवा मंगल विपुल तोरन पताका केतु गृह गृह सोहहीं। म बनिता पुरुष सुन्दर चतुर छबि देखि मुनि मन मोहहीं॥ पुर की सुन्दर शोभा देखकर ब्रह्मा की रचना सचमुच तुच्छ लग रही है। * वन, बाग, कुएँ, तालाब, नदियाँ सब सुन्दर हैं; उनका वर्णन कौन कर सकता। का है ? घर-घर बहुत-से मंगल-सूचक बन्दनवार और अनेक ध्वजा-पताका शोभित । हो रहे हैं। वहाँ के सुन्दर और चतुर स्त्री-पुरुषों की छवि देखकर मुनियों के भी । मन मोहित होते हैं। छ । जगदम्बा जहँ अवतरी सो पुर बरनि कि जाइ ।। ॐ रिद्धि सिद्धि संपत्ति सुख नित नूतन अधिकाइ॥४॥ जिस पुर में स्वयं जगदम्बा (पार्वती) ने जन्म लिया है, क्या उसकी शोभा का वर्णन किया जा सकता है ? वहाँ नित्य नई-नई ऋद्धि-सिद्धि और संपदा बढ़ती जाती हैं। में नगर निकट वरात सुनि अाई ॐ पुर खरभरु सोभा अधिकाई हैंकार बनाव सजि वाहन नाना $ चले लेन सादर अगवानी जब बरात नगर के पास पहुँची, सुनकर नगर में चहल-पहल मच गई (राम) ॐ जिससे बड़ी शोभा और बढ़ गई । (पुरवासी लोग) अपनी-अपनी अनेक सवारियों (स) को सजाकर आदर-सहित बरात को लेने के लिये चले। हियँ हरपे सुर सेन निहारी ॐ हरिहि देखि अति भए सुखारी एम सिव समाज जव देखन लागे ॐ विडरि चले वाहन सब भागे राम . देवताओं के समाज को देखकर सब लोग प्रसन्न हुए और विष्णु भगवान् को देखकर तो बहुत ही सुखी हुए। किन्तु जब वे शिवजी की मंडली को देखने *, * लगे, तब उनकी सवारियों के हाथी, घोड़े आदि डरकर भाग चले । ॐ १. आगे चलकर लेने के लिये । २, डर कर ।