पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१२८

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  1. . : - धरि धीरज तहँ रहे सयाने ६ बालक सव लइ जीव पराने राम गए भवन पूछहिं पितु माता ॐ कहहिं वचन भय कंपित गाता मान | कुछ बड़ी उम्र के समझदार लोग वहाँ धीरज धरकर खड़े रहे और लड़के

तो अपना प्राण लेकर भाग गये। वे घर पहुँचे, तब उनके माता-पिता पूछते हैं उन और वे भय से काँपते हुये शरीर से ऐसा वचन कहते हैं। ' कहिअ कहा कहि जाइ न वाती ॐ जम कर धारि किधौं चरित्राता बर बौराह बरद असवारा ॐ व्याल कपाल विधूपन छारा के क्या कहें, कोई बात कही नहीं जाती। यह वरात है या यमराज की सेना ? दूल्हा-पागल है; बैल पर बैठा हुआ है; साँप, कपाल और राख ही उसके गहने हैं। * छंद-तन छार ब्याल कपाल अपन नगर्न जटिल भयंकर । सँग भूत प्रेत पिसाच जोगिनि बिकट सुख रजनीच॥ ए जो जिअत रहिहि बरात देखत पुल्य बड़ तेहि र सही। | देखिहि सो उमा विवाह घर घर बात असलरिकह कही। ॐ दूल्हे के शरीर पर राख लगी हुई है, साँप और कपाल के गहने हैं, वह बिलकुल नंगी, जटाधारी और डरावना है। उसके साथ भयंकर मुंहवाले भूत, प्रेत, पिशाच, योगिनी और राक्षस हैं। जो बरात को देखकर जीता बच रहेगा, * सचमुच उसके बड़े ही पुण्य हैं, और वही पार्वती का विवाह देखेगा । लड़कों ने घर-घर यही बात कही। समुझि महेस समाज सब जननि जनक सुसुकाहिं। बाल बुझाए बिबिध बिधि निडर होहु डर नाहिं ॥५॥ | महादेवजी का समाज समझकर माता-पिता मुस्कुराते हैं। उन्होंने लड़कों को बहुत तरह से समझाया कि निर्भय हो; कोई डर नहीं है। लई अगवान वरातहि आए ॐ दिए सवहि जनवास सुहाए वैमा मैना सुभ आरती सँवारी के संग सुमंगल गावहिं नारी की अगवान लोग बरात को साथ लिवा लाये और उन्होंने सबको सुन्दर जनम वासे में ठहरा दिया। मैना ( पार्वती की माता ) ने शुभ अारती सजाई और - ॐ उनके साथ की स्त्रियाँ उत्तम मंगल गीत गाने लगीं ।