पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१२९

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| राम-राम -पम- राम-राम-राम-राम-रामोमो -*-राम -राम)--- १२६ . तिनस ४ ॐ ॐ कंचन थार सोह बर पानी ॐ पंरिछन' चली हरहिं हरपानी हैं। राम बिकट बेष रुद्रहिं जब देखा ॐ अबलन उर भय भयउ विसेषा राम सुन्दर हाथों में सोने का थाल शोभायमान है, इस प्रकार मैना प्रसन्नता से छु राम शिवजी का परछन करने (आरती उतारने) चलीं। जब महादेवजी को भयङ्कर राम है वेष में देखा, तब छिर्यों के मन में बड़ा भारी भय उत्पन्न हो गया। | भागि भवन पैठीं अति त्रासा ॐ गए महेस जहाँ जनवासा मैना हृदय भयउ दुख भारी ॐ लीन्ही बोलि गिरीसकुमारी वे बड़े ही डर के मारे भागकर घर में घुस गईं। और शिवजी जहाँ जनबासा था, वहाँ चले गये। मैना ( पार्वती की माता ) के मन में भारी दुःख हुआ। उन्होंने पार्वती को बुलाया। से अधिक सनेहँ गोद वैठारी ॐ स्याम सरोज नयन भरि बारी ॐ जेहिं विधि तुमहिं रूप अस दीन्हा ॐ तेहि जड़ वरु बाउर कस कीन्हा । रामो बहुत स्नेह से पार्वती को गोद में बैठाकर और नील-कमल के समान नेत्रों रासो क़ में आँसू भरकर वह कहने लगीं-जिस ब्रह्मा ने तुमको ऐसी सुन्दर रूप दिया राम) है, उस सूर्ख ने तुम्हारे लिये चावला वर कैसे बनाया है । हैं छंद-कस कीन्ह बर बौराह बिधि जेहि तुम्हहिं सुंदरता दई। | जो फलु चहिअ सुरतरुहिं सो बरबस बबूरहिं लागई॥ तुम्हसहितगिरिते गिरौं पावक जरों जलनिधि महुँ परौं। उनी घरु जाउ अपजस होउ जग जीवत बिबाहुन हौं करौं। जिस ब्रह्मा ने तुम्हें सुन्दरता दी है, उसने तुम्हारे लिये ऐसा बावला वरं कैसे बनाया है जो फल कल्पवृक्ष में लगना चाहिये, वह ज़बरदस्ती बवूल में लग रहा है। मैं तुम्हें लेकर पहाड़ पर से गिरूगी, आग में जलँगी या समुद्र में कूद पड़ेगी। घर उजड़े, चाहे संसार में अपयश हो, पर मैं जीते-जी तुम्हारा विवाह वर से न करूंगी। [ ललित अलंकार ] - सुमे । भईं बिकल अबला सकल दुखित देखि गिरिनारि।।

  • करि विलापु रोदति बदति सुता सनेहु सँभारि ॥६६॥ ॐ १. वर की आरती उतारना । २. जबरदस्ती ।