पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१३१

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एम)+=3-राम -राम -राम -राम- राम- राम- राम -राम -राम- राम-**-राम । १२८ चव नसके हे माता ! कलंक मत लो, रोना छोड़ो। यह अवसर ( शोक करने का ) म नहीं है। जो दुःख-सुख मेरे करम में लिखा है, उसे मैं जहाँ जाऊँगी, वहीं पाऊँगो । पार्वती के ऐसे नम्र और कोमल वचन सुनकर सब स्त्रियाँ सोच करने के लगीं और बहुत तरह से ब्रह्मा को दोष दे-देकर आँखों से आँसू गिराने लगीं। [ प्रथम असंगति अलंकार ] न) । तेहि अवसर नारद सहित अरु रिषि सप्त समेत् । पाने हैं | समाचार सुनि तुहिनगिरि गवने तुरित निकेत् ॥७॥ | इस समाचार को सुनकर हिमाचल उसी समय नारद जी को और सप्त ऋषियों को साथ लेकर अपने घर गये । हैं तब नारद सवही ससुझावा ॐ पूरब कथा प्रसंगु सुनावा है मैना सत्य सुनहु मम बानी ॐ जगदम्बा तव सुता भवानी तब नारद जी ने सबको समझाया और पूर्वजन्म की कथा का प्रसंग है। सुनाया। उन्होंने कहा--हे मैना ! तुम मेरी सच्ची बात सुनो ! तुम्हारी यह पुत्री राम साक्षात् जगदम्बा भवानी हैं। अजा अनादि सक्ति अविनासिनि ॐ सदा सम्भु अरधंग निवासिनि जग सम्भव पालन लय कारिनि छ निज इच्छा लीला वपु धारिनि ये कभी जन्म नहीं लेतीं, इनका कभी आरम्भ भी नहीं। ये कभी नाश न में होने वाली शक्ति हैं। ये सदा शिवजी के अर्धाङ्ग में रहती हैं। येही जगत् को में पैदा करतीं, पालन करतीं और उसका संहार करती हैं। यह अपनी ही इच्छा से । होम लीला-शरीर धारण करती हैं। ॐ जनमी प्रथम दच्छ गृह जाई के नाम सती सुन्दर तनु पाई राम तहँउ सती संकरहि बिवाहीं ॐ कथा प्रसिद्ध सकल जग माहीं

पहले ये दक्ष के घर पैदा हुई थीं। तब इनका नाम सती था और राम इन्होंने बहुत सुन्दर शरीर पाया था। वहाँ भी सती शिवजी ही को व्याही गई । छ थीं । यह कथा सारे जगत् में प्रसिद्ध है ।। । एक बार आवत सिव संगा ॐ देखेउ रघुकुल कमल पतंग

भयउ मोहु सिव कहा न कीन्हा ॐ भ्रम बस वेष सीय कर लीन्हा । के एक बार इन्होंने शिवजी के साथ आते हुये रघुकुलरूपी कमल के सूर्य के