पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१३७

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। १३४ अचZ भुनाया । ॐ माता प्रेम में अत्यन्त विकल हो गईं, परन्तु कुसमय जानकर उन्होंने धीरज ॐ में धरा ।। ॐ पुनि पुनि मिलति परति गहि चरना ॐ परम प्रेम कछु जाइ न बरना है राम) सब नारिन्ह मिलि भेटि भवानी ॐ जाइ जननि उर पुनि लपटानी मैना बार-बार पार्वती को भेंटती हैं और उनके चरणों पर पड़ती हैं। अतिराम शय प्रीति है। कुछ वर्णन नहीं किया जा सकता । पार्वती सब स्त्रियों से मिल भेंटकर फिर अपनी माता की छाती से जा लगीं। । छन्द-जननी बहुरि मिलि चलीं उचित असीस सब काहू दई । फिरि फिर विलोकति मातु तन तब सखी लेइसिव पहिं गईं एम जाचक सकल संतोष संकर उमा सहित भवन चले सब अमर हरषे सुमन बषि निसान नभ बाजे भले है फिर माता से मिलकर पार्वती चलीं । सब स्त्रियों ने उन्हें योग्य आशी- एम् वाद दिये । पार्वती जी, फिर-फिरकर माता को देखती थीं। तब सखियाँ उन्हें शिवजी के पास ले गईं। महादेवजी सब सँगतों को संतुष्ट कर पार्वती के साथ घर ( कैलाश ) को चले । सब देवगण प्रसन्न होकर फूलों की वर्षा करने लगे और आकाश में सुन्दर नगाड़े बजाने लगे । हो । चले संग हिमवंतु तब पहुँचावन अति हेतु ।। 42 बिबिध भाँति परितोषु करि बिदा कीन्ह बृषकेतु।१०२ औँ | . तब हिमाचल अत्यन्त प्रेम से शिवजी को पहुँचाने के लिये साथ चले । शिवजी ने बहुत तरह से उन्हें समझा-बुझाकर विदा किया। ॐ तुरत भवन आए गिरिराई ॐ सकल सैल सर लिए बोलाई ॐ राम) आदर दान विनय, बहु माना $ सब कर विदा कीन्ह हिमवानां .: पर्वतराज हिमाल तुरंत घर आये और उन्होंने सब पर्वतों और सरोवरों राम को बुलाया। हिमवान् ने आदर, दान, विनय और बहुत सम्मानपूर्वक सब को एम् विदा किया। १. पास ।