पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१३९

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. के संभु चार कथा पर वाढरित्र को सुनकर भाई और आँखों में की १३६ च ि पार वेद भी नहीं पाते। तब अत्यन्त मन्दबुद्धि और आँबार तुलसीदास उसका वर्णन कैसे कर सकता है ? ॐ संभु चरित सुनि सरस सुहावा ॐ भरद्वाज मुनि अति सुख पावा हैं एम) वहु लालसा कथा पर वाढ़ी 3 नयनन्हि नीरु रोमावलि गदी मो । महादेवजी के रसीले और सुहावने चरित्र को खुनकर भरद्वाजजी ने बड़ा ही सुख पाया। उनके मन में कथा सुनने की लालसा बहुत बढ़ गई और आँखों में जल भर आया तथा रोमावली खड़ी हो गई ।। प्रेम विवस मुख प्राव न वानी 3 दसा देखि हरपे मुनि ग्यानी " अहो धन्य तव जनम मुनीसा ॐ तुम्हहिं प्रान सम प्रिय गौरीसा * वे प्रेम में मुग्ध हो गये। उनके मुख मे बाणी तक न निकली। उनकी यह ॐ दशा देखकर ज्ञानी मुनि याज्ञवल्क्य बहुत हपित हुये । (उन्होंने कहा---- ) है। * मुनीश ! तुम्हारा जन्म धन्य है; तुमको शिवजी प्राणु के समान प्रिय हैं। सिव पद कमल जिन्हहिं तिनाहीं ॐ रामहिं ते सपनेहुँ न सुहाहीं विनु छल विस्वनाथ पद नेहू ॐ राम भगत कर लच्छन एहू है। शिम शिवजी के चरगा-कमलों में जिनको प्रीति नहीं है, वें रामचन्द्रजी को स्वप्न एन हैं में भी अच्छे नहीं लगते । राम-भक्त का लक्षण यही है कि उसका विश्वनाथ शिवजी के चरणों में निष्कपट प्रेम हो । है सिव सम को रघुपति व्रतधारी ॐ विनु अघ तजी सती असि नारी पनु करि रघुपति भगति दृढ़ाई ६ को सिव सम रामहं प्रिय भाई | शिवजी के समान रामचन्द्रजी ( की भक्ति ) को व्रत धारण करने वाला और कौन है ? जिन्होंने बिना ही पाप के सती-जैसी घी को त्याग दिया। उन्होंने प्रण करके रामचन्द्रजी की भक्ति की दृढ़ता प्रकट की। हे भाई! रामचन्द्रजी को शिवजी के समान दूसरा कौन प्यारा है ? हो । प्रथमहिं मैं कहि सिव चरित बूझा' मरमु तुम्हार ।। कुँ ? सुचि सेवक तुम्ह राम के रहित समस्त विश॥१०४।। मैंने पहले शिवजी का चरित्र वर्णन करके तुम्हारा भेद समझ लिया । । तुम रामचन्द्रजी के पवित्र सेवक हो और सच दोर्पो से रहित हो । * : १. समझ लिया है।