पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

5 बातुल भूत विवस मतवारे ॐ ते नहिं बोलहिं वचन विचारे राम) जिन्ह कृत महा मोह मद पाना ॐ तिन्ह कर कहा रिअ नहिं काना न जिन्हें बायु का रोग ( सन्निपात ) हो गया हो, भूत लगा हो, और जो नशे में चूर हों, ऐसे लोग विचारकर वचन नहीं बोलते । जिन्होंने महा-मोहरू मदिरा पी रक्खी है, ऐसों के कहने पर कान न देना चाहिये । s अस निज हृदय बिचारि तजु संसय सजु रास पद। 623 सुनु गिरिराज कुमार श्रेस तस रवि र बचन सस । | ऐसा अपने हृदय में विचारकर सन्देह को छोड़ो और रामचन्द्रजी के चरणों राम) को भजो । हे पार्वती ! मेरे बचन सन्देहरूपी अंधकार को नाश करने के लिये सूर्य की किरणों के समान हैं। मेरे वचनों को सुनो। (राम) सगुनहिं अगुनहिं नहिं कछु भेदा ॐ गावहिं मुनि पुरान बुध वेदा अशुन अरूप अलख अज जोई छ भगत प्रेम बस सगुन सो होई | सगुण और निर्गुण में कुछ भी भेद नहीं है, मुनि, पुराण, पण्डित और वेद सभी ऐसा गाते हैं। जो निर्गुण ( ब्रह्म ) अरूप ( निराकार ), अलख और । अजन्मा है, वही भक्तों के प्रेम-वश सगुण हो जाता है। जो गुन रहित सगुन सोइ कैसे ॐ जलु हिम उपल विलग नहिं जैसे जासु नाम भ्रम तिमिर पतंगा' ॐ तेहि किमि कहिअ विमोह प्रसंगा राम) जो निर्गुण है, वही सगुण कैसे हो सकता है ? ( यह वैसे ही है ) जैसे जल और ओला भिन्न नहीं। जिसका नाम भ्रमरूपी अन्धकार के लिये सूर्य के राम) समान है, उसके लिये मोह का प्रसङ्ग भी कैसे कहा जा सकता है ? । राम सच्चिदानंद दिनेसा ॐ नहिं तहँ मोह निसा लवलेसा सहज प्रकासरूप भगवाना ॐ नहिं तहँ पुनि विग्यान विहाना रामचन्द्रजी सच्चिदानन्दस्वरूप सूर्य हैं। वहाँ मोहरूपी रात्रि का लेशमात्र = भी नहीं है। भगवान् स्वभाव ही से प्रकाशरूप हैं, इसलिये वहाँ त्रिज्ञानस्य प्रातःकाल होता ही नहीं। ( जब रात नहीं, तब प्रातःकाले कैसा १ ) । हरष विषाद ग्यान अग्याना ॐ जीव धरस अहमिति अभिमाना होम, राम ब्रह्म व्यापक जग जाना ॐ परमानंद परेस पुराना । १. सूर्य । २. सवेरा ।।