पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१५१

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१४८ अ चविमानस हर्प और शोक, ज्ञान और अज्ञान, अहंकार और अभिमान ये सब जीव के धर्म हैं। रामचन्द्रजी तो व्यापक ब्रह्म, परम आनन्द-स्वरूप, सबके स्वामी और पुराण-पुरुष हैं। इसे सारा जगत् जानता है। राम् । पुरुष प्रसिद्ध प्रकास निधि प्रगट परावर नाथ। है : रघुकुल मनि मम स्वामि सौइ कहि सिवनायउ माथ जो प्रसिद्ध ( पुराण ) पुरुष हैं, प्रकाश के भंडार हैं, सब रूपों में प्रकट हैं, कुल जड़-चेतन के स्वामी हैं, वे ही रघुकुलमणि श्रीरामचन्द्रजी मेरे स्वामी हैं, ऐसा कहकर शिवजी ने उनको मस्तक नवाया। निज भ्रम नहिं समुझहिं अग्यानी ॐ प्रभु पर मोह धरहिं जड़ प्रानी जथा गगन घन पटेल निहारी ॐ झाँपेउ भानु कहहिं कुविचारी हैं। अज्ञानी मनुष्य अपने भ्रम को नहीं समझते और वे मूर्ख प्रभु रामचन्द्रजी हैं। पर मोह का आरोप करते हैं। जैसे आकाश में बादलों का पर्दा देखकर अज्ञानी रामो लोग कहते हैं कि सूर्य को बादलों ने छिपा लिया। चितव जो लोचन अंगुलि लाएँ की प्रगट जुगल ससि तैहिके भाएँ उमा रामविषयक अस मोहा ® नभ तम धूम धूरि जिमि सोहा जो मनुष्य अपनी आँख के आगे उँगली लगाकर देखता है, उसके लिये तो दो चन्द्रमा स्पष्ट दिखाई देते हैं। हे पार्वती ! रामचन्द्रजी के विषय में मोह की बात ऐसी ही है जैसे आकाश में अंधकार, धुएँ और धूल का सोहना। अर्थात् आकाश जैसे निर्मल है, उसी तरह रामचन्द्रजी भी हैं। [ उदाहरण अलंकार ] विषय करन सुर जीव समेता ॐ सकल एक ते एक सचेता हैं सव कर परम प्रकासक जोई ॐ राम अनादि अवधपति सोई | विषयों से इन्द्रियाँ, इन्द्रियों से उनके देवता, देवताओं से जीवात्मा, ये ॐ सर्व एक की सहायता से एक चेतन हैं। इन सबका जो परम प्रकाशक है, हूँ एम) अर्थात् जिससे यह सव चीजें चैतन होती हैं, वही अनादि ब्रह्म अयोध्यानरेश है रामचन्द्रजी हैं। राम) जगत प्रकास्य प्रकासक राम् ॐ मायाधीस ग्यान गुन धामू । जासु. सत्यता ते जड़ माया ॐ भास सत्य इव मोह सहाया १. लिये।