पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१५२

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। बालकाण्ड . जगत् प्रकाश्य है और रामचन्द्रजी प्रकाशक हैं। वे माया के स्वामी श्रीर ज्ञान तथा गुणों के घाम हैं। जिनकी सत्ता से, मोह की सहायता पाकरे जड़ (अचेतन ) माया भी सत्य सी भासित होती है । मे रजत' सीप महुँ आस जिसि जथाभानु कर वारि। : होने जढाप मृषा तिहूँ त सौह अमन होउटारि ॥ जैसे सीप में चाँदी की और सूर्य की किरणों में पानी की प्रतीति होती है। म यद्यपि यह प्रतीति तीन कालों में झूठी हैं, पर इस भ्रम को कोई नहीं टाल

  • सकता है।

म) एहि विधि जग हरि अस्रित रहई ॐ जदपि असत्य देत दुखु अहई ॐ जौं सपने सिर काटई कोई चिनु जागे न दूरि दुख होई | इस तरह यह संसार भगवान् के आश्रित है । यद्यपि जगत असत्य हैं, जिन है तो भी दुःख तो देता ही है; जिस तरह स्वप्न में कोई सिर काट ले, तो बिना में एमी जागे वह दुःख दूर नहीं होता। का जासु कृपाँ अस भ्रम मिटि जाई गिरिजा सोइ कृपालु रघुराई । आदि अन्त कोउ जासु न पावा ॐ मति अनुमानि निगम अस गावा हे पार्वती ! जिनकी कृपा से इस तरह का भ्रम मिट जाता है, वही कृपालु रामचन्द्रजी हैं। जिनका आदि और अन्त किसी ने नहीं पाया, वेदों ने अपनी बुद्धि से अनुमान करके ( इस प्रकार ) गाया है। विनु पद चलइ सुनई विनु काना ॐ कर विनु करम करई विधि नाना म) आनन रहित सकल रस भोगी ॐ विनु वानी वक्ता बड़ जोगी वह ब्रह्म पाँवों के बिना ही चलता है, कानों के बिना ही सुनता है, हाथों राम) के बिना ही तरह-तरह के काम करता है, मुंह के बिना ही वह सारे रस का भोग कैं करता है और वाणी के बिना ही बड़ा योग्य वक्ता तथा योगी है। रामतन विनु परस नयन विनु देखा ॐ ग्रहइ प्रान विनु वास असेवा । असि सव भाँति अलौकिक करनी ॐ सहिमा जासु जाइ नहिं बरनी । वह शरीर के बिना ही छूता है और आँखों के बिना ही देखता है । वह न । नाक के बिना ही सब गंध सेंध लेता है। इस तरह उस ब्रह्म की करनी सभी १. चाँदी ।