पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१५४

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| -ju - १५.१ । ॐ पुनि पुनि प्रभुपद कमल गहि जोर पंह' पानि । - बौली गिरिजा वचन बर नहुँ प्रेसरस सानि ॥११॥ । बार-बार स्वामी के चरण-कमलों को पकड़कर और अपने कमल ऐसे हाथ जोड़कर, पार्वती मानो प्रेम-रस में सानकर सुन्दर वचन बोलीमें ससि कर सस सुनि गिरा तुम्हारी ॐ मिटा मोह सरदातप भारी ॐ तुम्ह कृपाल सबु संसउ हरेऊ $ राम स्वरूप जानि सोहिं परेऊ राम चन्द्रमा की किरणों के समान शीतल आपके बचन सुनकर मेरा अज्ञान । | रूपी भारी ताप शरद-ऋतु की धूप के समान मिट गया । हे कृपालु ! आपने मेरे सारे । राम्रो सन्देह हर लिये; अव रामचन्द्रजी का यथार्थ स्वरूप मेरी समझ में आ गया है । | नाथ कृपा अव गयेउ विपादा ॐ सुखी भइउँ प्रभु चरन प्रसादा ए अब सोहि पनि किंकरि जानी ॐ जदपि सहज जड़ नारि अयानी । | हे नाथ ! आपकी कृपा से अब मेरो विषाद जाता रहा और आपके चरणों * के अनुग्रह से मैं सुखी हो गई। यद्यपि मैं स्त्री होने के कारण स्वभाव ही मे मूर्ख और ज्ञान-हीन हूँ, पर अब आप मुझे अपनी दासी जानकर--- प्रथम जो मैं पूछा सोइ कहहू ॐ ज मोपर प्रसन्न प्रभु अहट्ट राम राम ब्रह्म चिन्मय अविनासी ॐ सर्व रहित सव उर पुर वासी ने हे प्रभो ! जो आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो जो बात मैंने पहले आपने पृल्ली : थी,उसे कहिये । रामचन्द्रजी व्रह्म हैं, ज्ञानस्वरूप हैं, अविनाशी हैं, सबसे अलग ॐ और सबके हृदय-रूपी नगरी में बसते हैं । नाथ धरेउ नर तनु केहि हेतू ॐ मोहि समुझाइ कहहु वृषकेतू उमा बचन सुनि परम विनीता ॐ राम कथा पर प्रीति पुनीता हे वृषभकेतु ! आप यह समझाकर कहिये कि उन्होंने मनुष्य का शरीर । किस कारण से धारण किया १ पार्वती के अत्यन्त नम्र वचन सुनकर और रामचन्द्रजी की कथा में उनका विशुद्ध प्रेम देखकर--- राम के हिय हरड़े कासारि तव संकर सहज सुजान ।। बहु बिधि उसहि प्रसंसि पुनि वोले कृपानिधान ।१२० । १. कसल ।