पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१५६

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काल-काश ॐ तस मैं सुमुखि सुनाव तोही ॐ समुझि परइ जस कारन मोही हैं। राम्या जव जव होइ धरम के हानी ॐ वाढ़हिं असुर अधम अभिमानी . और जो कुछ कारण मेरी समझ में आता है, हे सुमुवि ! वैसा मैं तुमको राम्रो सुनाता हूँ। जब-जब धर्म की हानि होती है और नीच अभिमानी राक्षस बढ़ जाते हैं, एम् करहिं अनीति जाइ नहिं वरनी ® सीदहिं विप्न धेनु सुर धरनी तव तव प्रभु धरि विविध सरीरा ॐ हरहिं कृपानिधि सजन पीरा जब वे ऐसा अन्याय करते हैं कि जिसका वर्णन नहीं हो सकता; ब्राह्मण, गाय, देवता और पृथ्वी दुःखी हो जाते हैं; तत्र-तव कृपानिधि भगवान् नाना : प्रकार के शरीर धारण करके सज्जनों की पीड़ा हरते हैं। राम्रो असुर सारि थपहिं सुरन्ह रावहिं निज ति सेतु ।। - जग विस्तारहिं बिसद जस रास जलस्कर हेतु ॥१२१।। वे असुरों को मारकर देवों की स्थापना और अपने वेदों की मर्यादा की । रक्षा करते हैं और संसार में अपना निर्मल यश फैलाते हैं। रामचन्द्रजी के अवतार का यही कारण है। सोइ जस गाइ भगत भव तरहीं ॐ कृपासिंधु जन हित तनु धरहीं ॐ राम जनम के हेतु अनेका ॐ परम विचित्र एक ते एका उसी यश को गाकर भक्तजन भवसागर से तर जाते हैं। कृपासागर भगवान् | भक्तों के हित के लिए शरीर धारण करते हैं। रामचन्द्र जी के जन्म लेने के अनेक (राम) कारण हैं जो एक से एक बढ़कर अद्भुत हैं। जनम एक दुई कहउँ खानी 6 सावधान सुनु सुमति भवानी द्वारपाल हरि के प्रिय दोऊ ॐ जय अरु विजय जान सब कोऊ हे सुन्दर बुद्धिवाली भवानी ! तुम सावधान होकर सुनो, में उनके दो-एक जन्मों का विस्तार से वर्णन करता हूँ। विष्णु के जय और विजय नाम के दो प्यारे द्वारपाल हैं, जिनको सब कोई जानते हैं । । विप्न स्राप तें दूनउ भाई के तामस असुर देह तिन्ह पाई । कनककसिषु अरु हाटकलोचन ॐ जगत विदित सुरपति मद मोवन उन दोनों भाइयों ने ब्राह्मण के शाप से असुरों का तामसी शरीर पाया ।