पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१५७

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। १५४ चतन के ॐ एक का नाम हिरण्यकशिपु और दूसरे का हिरण्याक्ष थाः। ये देवताओं के राजा ने इन्द्र के गुर्व को छुड़ाने वाले सारे जगत् में प्रसिद्ध हैं। . ...... के विजई समर वीर विख्याता ॐ धरि वराह' वपु एक निपाता है राम्रो होइ नरहरि दूसर पुनि मारा ॐ जन प्रहलाद सुजस विस्तारा। । वे युद्ध के जीतने वाले और बड़े विख्यात शूरवीर थे । भगवान् ने वाराह है का रूप धारण करके उनमें से एक (हिरण्याक्ष ) को मारा; फिर नरसिंह रूप धारण करके दूसरे ( हिरण्यकशिपु ) का वध किया और अपने भक्त प्रह्लाद का सुयश सुमो फैलाया। भए निसाचर जाइ तेइ महाबीर बलवान ।।.. है - कुम्भकरन रावन सुभट सुर बिजयीजग जाना१२२॥ वे ही दोनों जाकर बलवान और महावीर राक्षस हुए। देवताओं को जीतने वाले बड़े योद्धा रावण और कुम्भकर्ण को सारा जगत् जानता है। मुकुत न भए हते भगवाना ॐ तीनि जनम द्विज वचन प्रवाना । एक बार तिन्हके हित लागी ॐ धरेउ सरीर भगत अनुरागी । यद्यपि भगवान ने उन्हें मारा, पर तो भी वे मुक्त न हुए, क्योंकि ब्राह्मण * के वचन (शाप ) का प्रमाण तीन जन्म के लिये था। एक बार उनके कल्याण के । लिए भक्तॊ पर प्रेम करने वाले भगवान् ने फिर अवतार लिया। :: : कस्यप अदिति तहाँ पितु माता ॐ दसरथ कौसिल्या . विख्याता एक कलप एहि विधि अवतारा $ चरित पवित्र किए संसारा वहीं (उस अवतार में) उनके पिता और माता कश्यप और अदिति थे, जो * दशरथ और कौशल्या के नाम से प्रसिद्ध थे। एक कल्प में इस तरह अवतार हुँ लेकर उन्होंने संसार में पवित्र लीलायें कीं। .... . . ॐ एक कलप सुर देखि दुखारे ॐ समर जलंधर, सन सब, हारे हैं सुको सम्भु कीन्ह संग्राम अपारा ॐ दनुजः महावल मरइ न मारा। परम सती असुराधिप नारी को तेहि वल ताहि न जितहिं पुरारी * एक कल्प में जलन्धर दैत्य से सब देवता युद्ध में हार गये । उनको दुःखी * देखकर शिवजी ने उस दैत्य से बड़ा ही घोर युद्ध किया; पर वह महाबली दैत्य के । । १. शूकर । २. शरीर । ३.. प्रमाण । । ... : ... ; ;