पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१५८

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== = == ॐ मारे नहीं मरा । उस दैत्यराज की स्त्री वड़ो ही पतिव्रता थी । उसके प्रताप ही से शिवजी उस दैत्य को जीत न सके । है । छल झरि टारेड तासु व्रत प्रभु सुर कारज कीन्ह । | जब तेहिं जानेउ सरसत्व खाप कोप झरि दीन्हा१२३ । प्रभु ने छल से उस दैत्य की स्त्री का व्रत भंग कर देवताओं का काम किया । जब उस स्त्री ने यह भेद जाना, तब उसने क्रोध करके शाप दिया । राम तासु साप हरि दीन्ह प्रदाना ॐ कौतुक निधि कृपाल भगवानी ने तहाँ जलंधर रावन भयऊ ६ रन हति राम् परम पद दयऊ बड़े ही कौतुकी और दयालु भगवान् ने उस स्त्री का शाप स्वीकार ॐ किया। तब वह दैत्य (जलन्धर) रावण वना, जिसे रामचन्द्रजी ने लड़ाई में मार । * कर परमपद दिया। राम) एक जनम कर कारन एहा ६३ जेहि लगि राम धरी नर देहा है। प्रति अवतार कथा प्रभु केरी' ॐ सुनु मुनि बरनी कविन्ह घनेरी एक जन्म का कारण यही था, जिससे रामचन्द्रजी ने मनुष्य-देह धारण | किया। हे भरद्वाज मुनि ! सुनिये, भगवान् के हरएक अवतार की कथा का । एम) वर्णन कवियों ने विस्तार से किया है। ॐ नारद स्राप दीन्ह एक वारा ३ कलप एक तेहि लगि अवतारा ॐ गिरिजा चकित भई सुनि वानी के नारद विप्नुभगत मुनि ग्यानी एक बार नारदमुनि ने शाप दिया, इसलिए एक कल्प में उसके लिए * अवतार हुआ। यह बात सुनकर पार्वती बड़ी चकित हुई ( अॅरि बोलीं कि } तम, नारद तो विष्णु-भक्त और ज्ञानी हैं । कारन वन स्राप मुनि दीन्हा ॐ का अपराध रमापति कीन्हा ए यह प्रसंग मोहि कहहु पुरारी ॐ मुनि मन मोह चिज भारी मुनि ने भगवान् को किस कारण से शाप दिया ? लक्ष्मीकांत ने उनका क्या अपराध किया था ? हे त्रिपुरारि ! यह कथा मुझसे कहिये । आश्चर्य की बात है कि मुनि नारद के मन को भी मोह हुआ ।