पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१६०

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ॐ सुनासीर मन महुँ अति त्रासा ॐ चहत देवरिपि मम पुर वासा | एमी जे कामी लोलुप जग माहीं ॐ कुटिल काक इव सवहिं डेराही एम इन्द्र के मन में यह बड़ा डर था कि देवर्षि नारद मेरे लोक (अमरावती) का निवास ( राज्य ) चाहते हैं। जो लोग संसार में कामी और लोभी होते हैं, वे कुटिल कौवे की तरह सबसे डरते हैं। छ । सूख हाड़ लै भाग सठ स्वान निरखि मृगराज। - छीन लेइ जन जाल जड़'तिमि'सुरपतिहि ललाज॥ जैसे सिंह को देखकर मूर्ख कुत्ता सूखा हाड़ लेकर भागे और वह सूख यह रामो समझे कि कहीं उस हाड़ को वह सिंह छीन न ले, वैसे ही इन्द्र को (नारदजी है मेरा इन्द्रलोक छीन लेंगे ऐसा सोचते हुए ) लज्जा नहीं आई। राम) तैहि आलमहि मदत जव गयङ ॐ निज माया बसंत निरमऊ कुसुमित बिबिध बिटप बहुरंगा ॐ कूजहि कोकिल गुजाहिँ शृङ्गा जब कामदेव उस आश्रम में गया, तब उसने अपनी माया से वहाँ वसन्तऋतु को उत्पन्न किया । तरह-तरह के वृक्षों पर रंग-बिरंगे फूल खिल गये और उन पर कोयले कुकने लगीं और भौंरे गुञ्जारने लगे। चली सुहावनि त्रिविध बयारी ॐ कास कृसानु वढ़ावनिहारी रंभादिक सुरनारि नवीना के सकल असमसर कला प्रवीना काम की आग को बढ़ाने वाली त्रिविध अर्थात् शीतल, मन्द और सुगन्धित सुहावनी हवा चलने लगी। देवताओं की रम्भा आदि सब नवयौवना स्त्रियाँ, जो कामदेव की कलाओं में निपुण थीं, करहिं गान बहु तान तरंगा ॐ बहु बिधि क्रीड़हिं पानि पतंगा' । राम्रो देखि सहाय मदन हरषाना ® कीन्हेसि पुनि प्रपंच विधि नाना तरह-तरह की तानों की तरंग में वे गाने लगीं और हाथ में गेंद लेकर तरह-तरह की क्रीड़ायें करने लगीं। इस तरह सहायकों को देखकर कामदेव बहुत प्रसन्न हुआ और फिर उसने बहुत प्रकार के मायाजाल रचे ।। काम कला कछु भुनिहि न व्यापी ॐ निज भय डरेउ मनोभव पापी ने सीम् कि चॉपि सकइ कोउ तासू ॐ बड़ रखवार रमापति जासू ने १. इन्द्रे । २. मूर्ख । ३. वैसे । ४. गेंद । ५. दबा ।