पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

६ -"= १८, २ २८, ९,८" । १५८ : अहंतान

हैं परं कामदेव की कोई कला मुनि पर प्रभाव न डाल सकी, तब पापी काम. देव अपने ही लिये भयभीत हो गया। जिसके बड़े रक्षक लक्ष्मीपति भगवान हैं,

भला, उसकी मर्यादा को कोई दुबा सकता है ? राम्रो र सहित सहाय सभीत अति मानि हारि मन मैन'।. राम हैं ! गहेसिजाइ मुनि चरन तबकहि सुठिारत बैन।१२६ । फिर अपने सहायक-समेत कामदेव ने बहुत डरकर और मन में हार मानकर मुनि के चरणों को जा पकड़ा और वह नम्र और आर्त बचन बोलने लगा।। भयउ न नारद मन कछु रोषा ॐ कहि प्रिय वचन काम परितोषा राम नाइ चरन सिरु आयसु पाई की गयउ मदन तव सहित सहाई रामो पर नारद मुनि के मन में कुछ भी क्रोध न आया । उन्होंने प्यार के वचन । राम) कहकर कामदेव का समाधान किया। फिर मुनि के चरणों में सिर नवाकर और आज्ञा पाकर कामदेव अपने सहायको-सहित चला गया । मुनि सुसीलता आपनि करनी ॐ सुरपति सभा जाइ सब बरनी सुनि सबके मन अचरज वा ॐ मुनिहि प्रसंसि हरिहि सिरु नावा | इन्द्र की सभा में जाकर उसने मुनि की सुशीलता और अपनी करतूत । सब कही। जिसे सुनकर सबके मन में अचरज हुआ और उन्होंने नारदजी की । बड़ाई करके भगवान् को प्रणाम किया। । तंव नारद. गवने सिव पाहीं ॐ जिता काम अहमिति मन माहीं को मार चरित संकरहि . सुनाए ॐ अति प्रिय जानि महेस सिखाए तब नारदजी शिवजी के पास गये, मुनि के मन में अहङ्कार हो गया कि । उन्होंने कामदेव को जीत लिया। उन्होंने कामदेव की सारी लीला शिवजी को खिम) सुना दी । शिवजी ने उनको बहुत प्रिय समझकर समझाया । के वार वार विनवउँ मुनि तोही ॐ जिमि यह कथा सुनायहु मोही । पु तिमि जनि हरिहि सुनायहु.कबहूँ ॐ चलेहु प्रसंग दुरायहु तबहूँ हे मुनि ! मैं बार-बार विनती करता हूँ कि जिस तरह यह कथा तुमने म मुझे सुनाई है, उसी तरह विष्णु को कभी मत सुनाना । जो चर्चा चले भी, तो एम्। है इसको छिपा जाना । १. कामदेव । २. वचन । ३. छिपाना । .. |