पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१६३

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ॐ १६० आना । ॐ भगवान ने मुँह रूखी बनाकर कोमल वचन कहा-हे मुनिराज ! आपका स्मरण करने से मोह, कामदेव, मंद और अभिमान दूर हो जाते हैं; ( फिर आपके लिये तो कहना ही क्या १). .. ' सुनु मुनि मोह होइ मन ताकें ॐ ग्यान बिराग हृदय नहिं जाके ॐ ब्रह्मचरज व्रत रत मतिधीरा ॐ तुम्हहिं कि करइ मनोभव' पीरा एम) हे मुनि ! सुनिये, जिसके हृदय में ज्ञान-वैराग्य नहीं है, मोह उसके मन में होता है। आप तो ब्रह्मचर्य-व्रत में तत्पर और बड़े धीर-बुद्धि हैं। भला, कहीं के म आपको भी कामदेव सता सकता है १ । । नारद कहेउ सहित अभिमाना ॐ कृपा तुम्हारि सकल भगवाना करुनानिधि मन दीख विचारी ॐ उर अंकुरेउ गरब तरु भारी नारदजी ने अभिमान के साथ कहा—हे भगवान् ! यह सब आपकी * कृपा है। करुणा-निधान भगवान् ने मुन में विचार करके देखा कि इनके मन में अभिमानरूपी भारी वृक्ष का अंकुर उग आया है। हैं बेगि सो मैं डारिहउँ उखारी ॐ पन हमार सेवक हितकारी मुनि कर हित मम कौतुक होइ ॐ अवसि उपाय करवि मैं सोई ॐ अब मैं इसे जल्दी ही उखाड़ फेकूगा; क्योंकि भक्तों का हित करना । हमारा प्रण है। इससे मुनि का कल्याण और मेरा खेल होगा । मैं अवश्य वही राम है उपाय करूंगा। तव नारद हरिषद सिरु नाई ॐ चले हृदय अहमिति अधिकाई ॐ श्रीपति निज माया तब प्रेरी ॐ सुनहु कठिन करनी तैहि केरी छु। तब नारदमुनि भगवान् के चरण में सिर नवाकर चले । उनके मन में का * अभिमान और भी बढ़ गया। फिर भगवान ने अपनी माया को प्रेरित किया। । अब उसकी कठिन करतूत सुनो। छ । विरचेउ मगु महुँ नगर तेहि सत जोजन बिस्तार। ) - श्रीनिवास-पुर ते अधिक रचना विविध प्रका॥१२९॥ उसने रास्ते में सौ योजन ( चार सौ कोस ) का एक बहुत ही सुन्दर नगर * रचा। उस नगर की भाँति-भाँति की रचनाएँ लक्ष्मी-निवास ( भगवान् के ) १. कामदेव । . : |