पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१६५

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। १.६२ अ ब्न । ॐ उसके रूप को देखते ही मुनि, वैराग्य भूल गये और बड़ी देर तक उसे , देखते ही रहे। उसके लक्षण देखकर मुनि अपने आप को भूल गये और हृदय ऊँ में हर्षित हुए पर उसे प्रगट न होने दिया । . . . . . राम) जो एहि वरई अमर सोइ होई. ॐ समर भूमि तैहि जीत न कोई सेवहिं सकल चराचर ताही ॐ बरइ सीलनिधि कन्याः जाही । | ( वे मन में कहने लगे कि ) जो इसे ब्याहेगा, वह अमर होगा और कोई उसे युद्ध में जीत न सकेगा। यह शीलनिधि की कन्या जिसको बरेगी, सारा । चराचर जगत् उसकी सेवा करेगा । लच्छन सव बिचारि उर राखे ॐ कछुक बनाइ भूप सन भाखे ॐ सुतां सुलच्छन कहि नृप पाहीं ॐ नारद चले सोच मन माहीं है | सर्व लक्षणों को विचारकर मुनि ने अपने हृदय में रक्खा और राजा से रामो कुछ और अपनी ओर से बनाकर कह दिया। नारदमुनि राजा को यह कहकर मो चल दिये कि तुम्हारी पुत्री सुलक्षणा ( अच्छे लक्षणों वाली ) है। पर वे मन में राम) है यह सोचते हुये चले- ... . .। करउँ जाइ सोइ जतन विचारी ॐ जेहि प्रकार मोहिं बरइ कुमारी जप तप कुछ न होइ तेहि काला ॐ हे विधि मिलइ कवन विधि वाला । मैं जाकर सोच-विचार करके ऐसा उपाय करू, जिससे ( यह ) कन्या मुझे ही बरे। इस समय जप-तप तो कुछ भी नहीं हो सकता । हे विधाता ! * मुझे यह कन्या किस तरह मिलेगी ? यम) = एहि अवसर चाहिअ परम सौभा रूप विसाल। राम हूँ जो विलोकि रीझै कुअँरि तब मेलइ जयमाल १३१ |... इस मौके पर तो बड़ी भारी शोभा और विशाल रूप चाहिये, जिसे देखकर कुमारी मोहित हो और जयमाल मेरे गले में डाल दे। हरि सन' माँगउँ सुन्दरताई ॐ होइहि जात गहरु अति भाई राम मोरे हित हरि सम नहिं कोऊ ॐ एहि अवसर सहाय सोइ होऊ राम भगवान से सुन्दरता माँ ? पर भाई! उनके पास जाने में बहुत देर लग - -- - -- -- १. से ।