पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१६६

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  • जायगी । पर मेरे तो हरि के समान दूसरा कोई हितैषी भी नहीं । इस समय वे हैं राम) ही मैरे सहायक हों। है बहु बिधि विनय कीन्हि तेहि काला ® प्रगटेउ प्रभु, कौतुकी कृपाला ए प्रभु बिलोकि मुनि नयन जुड़ाने ॐ होइहि काजु हिाँ हरपाने

उस समय नारदजी ने भगवान् की बहुत विनती की । कौतुकी और " । कृपालु प्रभु वहीं प्रकट हो गये। स्वामी को देखकर नारदजी के नेत्र शीतल * हो गये और वे मन में बड़े ही प्रसन्न हुए कि अब काम बन ही जायगी । । अति आरत कहि कथा सुनाई के करहु कृपा करि होहु सहाई राम) आपन रूप देहु प्रभु मोही ॐ न भॉति नहिं पाव श्रोही । नारदजी ने बड़ी ही दीनता से सब कथा कह सुनाई और कहा- हे नाथ ! राम) अब कृपा करके मेरी सहायता कीजिये । हे प्रभो ! आप अपना रूप मुझको है दीजिए; और किसी तरह मैं उस ( राजकन्या ) को नहीं पा सकता ।। जेहि विधि लाथ होइ हित मोरा ॐ करहु सो वेगि' दास मैं तोरी निज माया बल देखि विसाला ॐ हियँ हँसि बोले दीनदयाला हे नाथ ! जिस तरह से मेरा कल्याण हो, आप वही काम जल्दी कीजिए । * मैं आपका दास हूँ। अपनी माया का विशाल बल देखकर दीनदयालु भगवान् । हृदय में हँसकर बोले--- राम) जेहि बिधि होइहि परम हिल नारद सुनहु तुम्हार।। सोइ हम झरबन अान' ऋछ बचलन मृषा हसार १३२ हे नारद ! सुनो, जिस तरह आपका परम कल्याण होगी, हम वही करेंगे, सम) 'दूसरा कुछ नहीं। हमारा वचन असत्य नहीं होता ।। कुपथ माँग रुज' व्याकुल रोगी ॐ वैद न देइ सुनहु मुनि जोगी रामो एहि बिधि हित तुम्हार मैं ठयऊ ॐ कहि अस अंतरहित प्रभु भयऊ . हे योगी मुनि ! सुनो। जिस तरह रोगी रोग से व्याकुल होकर कुपथ्य माँगे । तो वैद्य उसे नहीं देता, उसी तरह मैंने भी तुम्हारा हित करने की ठान ली है। ॐ ऐसा कहकर भगवान् अन्तद्धन हो गये ।। १. जल्द । २. अन्य । ३. रोग ।।