पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१७४

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बाल- ए।

  • १७१ को * सुर नर मुनि कोउ लाहिं जेहि न सोह साया प्रवल। secs3 अस बिचारि मन साहिं भजिअ महामाया पतिहिं ।

देवता, मनुष्य और मुनियों में ऐसा कोई नहीं है, जिसे भगवान की प्रबल * माया न मोह ले । ऐसा मन में विचारकर महामाया के पति विष्णु भगवान् । को भजना चाहिये। | अपर' हेतु सुनु सैलकुमारी ॐ कहीं विचित्र कथा विस्तारी म) जेहि कारन अर्ज अर्जुन अरूपा ॐ ब्रह्म भयेउ कौसलपुर भूपा | हे पर्वत की कन्या पार्वती ! भगवान् के अवतार का दूसरा कारण सुनो। राम मैं उनकी अनोखी कथा को विस्तार करके कहता हूँ। जिस कारण से जन्म-रहित, निर्गुण और रूप-रहित अनुपम ब्रह्म अयोध्यापुरी के राजा हुये । । राम जो प्रभु बिपिन फिरत तुम्ह देखा ॐ बन्धु समेत धरे मुनिवेपा । जासु चरित अवलोकिं भवानी ॐ सती सरीर रहिहु वौरानी | हे पार्वती ! जिस प्रभु को तुमने भाई के साथ मुनि के वेष में वन में फिरते । हुये देखा था, जिसका चरित देखकर, सती के शरीर में तुम ऐसी बावली बन गई थी कि अजहुँ न छाया मिटति तुम्हारी की तासु चरित सुनु भ्रम रुज हारी लीला कीन्हि जो तेहि अवतारा ॐ सो सच काहिहौं मति अनुसार आज भी उस बावलेपन की छाया नहीं मिटती। उसी का चरित्र सुनो, जो भ्रम रूपी रोग का हरण करने वाला है। उस अवतार में भगवान् ने जो लीलायें की हैं अपनी बुद्धि के अनुसार मैं वे सब कहूँगा। भरद्वाज सुनि संकर वानी $ सकुचि सप्रेम उमा मुसुकानी लगे बहुरि बरनै वृषकेतू ॐ सो अवतार भयेउ जेहि हेतू ने 8 याज्ञवल्क्य ने कहा--हे भरद्वाज ! शंकरजी के वचन सुनकर, सकुचाकर, पार्वती प्रेम-सहित मुस्कुराई। शिवजी फिर जिस कारण से भगवान् का बह अवतार हुआ था, उसका वर्णन करने लगे। ए । सो मैं तुम्हें सल कहउँ सबु सुलु मुनीस सन लाई। म

  • राम कथा कलिसल हरनि मंगल करनि सुहाइ १४१ को १. दूसरा ।।