पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१७९

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१७६ . चनिश्च ।। * हे अनार्थों का कल्याण करने वाले ! यदि मुझ पर आपका स्नेह हो, तो ॐ प्रसन्न होकर यह वर दीजिये कि आपका जो स्वरूप शिवजी के मन में बसता है । और जिसकी प्राप्ति के लिये मुनि उपाय करते रहते हैं, म) जो भुसुल्डि मन मानस हंसा ॐ सुगुन अगुन जेहि निगम प्रसंसा राम्रो कैं देखहिं हम सो रूप भरि लोचन ॐ कृपा करहु प्रनतारति मोचन कैं राम जो कागभुशुण्डि के मनरूपी मानसरोवर का हंस है, तथा वेद ने सगुण है और निर्गुण बताकर जिसकी प्रशंसा की है, हम उसी रूप को आँख भरकर देखें । हे शरणागत के दुःख मिटाने वाले ! कृपा कीजिये ।... । दम्पति बचन परम प्रिय लागे ॐ मृदुल, विनीत प्रेमरस पागे । भगत वछल' प्रभु कृपानिधाना ॐ विस्वबास : प्रगटे भगवाना | कोमल, विन्य-युक्त और प्रेमरस में पगे हुए राजा-रानी के वचन भगवान् को बहुत ही प्रिय लगे । भक्तों के प्रिय, कृपा के घर, सम्पूर्ण विश्व के निवास. स्थान प्रभु, भगवान् प्रकट हुये ।। । नील सरोरुह नील मनि नील नीरधर स्याम् ।

  • लाजहिं तनु सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥

नीले कमल, नील मणि और नीले बादल के समान श्याम वर्ण वाले । भगवान के शरीर की शोभा देखकर कई सौ करोड़ कामदेव भी लज्जित होते हैं। सरद मयंक वदन छवि सींचा ॐ चारु कपोल चिबुक दर ग्रीवा की अधर अरुन रद, सुन्दर नासा ॐ बिधुकर निकर विनिंदक हासा ॐ म) : उनका मुख शरद-ऋतु के चन्द्रमा के समान छवि की सीमा-स्वरूप था। रामो. * उनके गाल और ठुड्डी बहुत सुन्दर थे । गरदन शंख की तरह थी । लाल ओंठ, . म दाँत और नाक सुन्दर थे । उनका हास्य चन्द्रमा की किरणों के समूह को राम ॐ तिरस्कार करने वाला था। राम नव अम्बुज अम्बक छवि नीकी के चितवन ललित भावती जी की ॐ भृकुटि मनोज चाप छवि हारी ॐ तिलक ललाट पटल दुतिकारी ए नये कमल के समान आँखों की शोभा बड़ी अच्छी थी । मनोहर चितवन । * जी को बहुत प्यारी लगती थी । भौंहें कामदेव के धनुष की शोभा को हरण करने के १. वत्सल ! २. आँख ।