पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१८०

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- - - --- - - - * वाली थीं; माथे पर प्रकाशमय तिलक था। कुण्डल मकर मुकुट सिर भ्राजा ॐ कुटिल केस जनु मधुप समाजा ॐ उर श्रीवत्स रुचिर वनमाला ॐ पदिक हर धूपन मनिजाला रामो मकर के आकार के कुण्डले और मुकुट से सिर शोभित था । केश कुँव। राले थे, मान भौंरों का समूह ! छाती पर कौस्तुभ-मणि और सुन्दर वनमाला तथा पद-चिन्ह और मणियों के हार का भुषण था। । केहरि कंधर चारु जनेऊ ॐ वाहु विभूषन सुन्दर तेऊ करि' कर’ सरिस सुभग भुजदंडा ॐ कटि लिपंग कर सर कोदंडा * सिंह ऐसे कंधों पर सुन्दर जनेऊ था । बाहों में जो गहने थे, वे भी सुन्दर ॐ थे । हाथी की सूड के समान सुन्दर भुज-दंड थे | कमर में तरकस और हाथ में बाण और धनुष थे। हैं । तड़ित विनिंदक पीत पट्ट उदर रेख वर तीनि ।। 48 नाभि मनोहर लैति जनु जलुन अवँर छवि छीलि॥ । उनका पीताम्बर बिजली की लजाने वाला था। उनके पेट पर तीन सुन्दर रेखायें थीं। नाभी ऐसी मनोहर थी, मानो यमुना के भौंर ( जन-चक्र ) की शोभा को छीने लेती थी। पद राजीव वरन नहिं जाहीं ॐ मुनि मन मधुप वसहिं जिन्ह माहीं बाम भाग सोभति अनुकूला ॐ आदिसक्ति छविनिधि जगमूला कमल ऐसे चरणों को तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता है, जिनमें से एम) मुनियों के मनरूपी भौंरे बसते हैं। उनके बायें भाग में सदा अनुकूल, शोभा की सुनो है खान और जगत् की मूल आदिशक्ति श्रीलक्ष्मीजी शोभित हैं। [यह सम्पूर्ण प्रसंग राम) उपमा और प्रतीप अलंकार ] ।। * जासु अंस उपजाहिं गुन खानी ॐ अगनित लच्छि उसा ब्रह्मानी । राम भृकुटि विलास जासु जग होई ॐ राम वाम दिसि सीता सोई न है जिनके अंश से गुणों की खान अनगिनत लक्ष्मी, पार्वती और ब्रह्मा | एक जन्म लेती हैं, जिनके ध्रु-संचालन से जग की सृष्टि होती है, वही रोम के बाई है ओर स्थित सीता हैं। १. हाथी । ३. हाथ, सूड ।