पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१८४

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-25 - -- -- . ............---.- ऐसा वर माँगकर राजा भगवान के चरण पकड़े रह गये। करुणा के भण्डार भगवान् ने कहा--एवमस्तु, अर्थात् ऐसा ही हो । अब तुम मेरा आदेश मानकर इन्द्र की राजधानी (अमरावती ) में जाकर बसो । वाले 3 तहँ करि भोग विलास तात गए कछु काल पुनि। हामी ६.3 होइहहु अवधभुल तब मैं होब तुम्हार सुतः१५१॥ ॐ हे तात ! वहाँ खूब भोग-विलास करके, कुछ समय बीत जाने पर, तुम हो। राम अवध के राजा होगे, तब मैं तुम्हारा पुत्र होऊँगा । की इच्छामय नरवेष सवाँरे ॐ होइहउँ प्रगट निकेत तुम्हारे । अंसन्ह सहित देह धरि ताता % करिहउँ चरित भगत सुख दाता * इच्छानिर्मित मनुष्य-रूप धारण किये हुये मैं तुम्हारे घर प्रकट होऊँगा । * हे तात ! मैं अपने अंशों सहित देह धारण करके भक्तों को सुख देने वाले ॐ चरित्र करूगा । | जेहि सुनि सादर नर बड़भागी ॐ भव तरिहहिं ममता पद त्यागी रामो आदिसक्ति जेहिं जग उपजाया ॐ सोउ अवतरिहि मोरि यह माया जिन चरित्रों को बड़े भाग्यशाली मनुष्य आदर-सहित सुनकर समता और है राम) अभिमान त्यागकर भवसागर से तर जायेंगे। आदि-शक्ति यह मेरी माया भी, राम है जिसने संसार को उत्पन्न किया है, अवतार लेगी ।। । पुरउब मैं अभिलाष तुम्हारा ॐ सत्य सत्य पन सत्य हमारा । | पुनि पुनि अस कहि कृपानिधाना अंतरधान भए भगवाला ॐ मैं तुम्हारी अभिलाषा पूरी करूंगा। मेरा प्रण सत्य है, सत्य है, सत्य है। कृपा के घर भगवान् बार-बार ऐसा कहकर अन्तर्धान हो गये । । दंपति उर धरि भगति कृाला ॐ तेहि अस्रिम निवसे' कछु काला समय पाइ तन तजि अनयासाङ जाइ कीन्ह अमरावति चासा एम स्त्री-पुरुष ( राजा-रानी ) भक्तों पर कृपा करने वाले भगवान् की भक्ति को । । हृदय में धारण करके उस आश्रम में कुछ समय तक रहे । समय पाकर, सहज एमा ही में शरीर छोड़कर, उन्होंने अमरावती में जाकर बस किया है। १. बसे । २. सहज में ।