पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१८६

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ऊ । लाङ १८३ हैं जब प्रतापरबि भयेउ नृप फिरी दोहाई देस ।

  • प्रजा पाल अति वै विधि कतहुँ नहीं अघलेस।१५३॥

जब प्रतापभानु राजा हुआ, देश में उसकी दोहाई फिर गई। वह वेद में वर्णित विधि से प्रजा का पालन करने वाला था और पाप का कहीं लेश भी उसके ने राज्य में नहीं था । । नृप हितकारक सचिव सयाना की लाम धरमरुचि सुक्र समाना सचिव सयान बंधु बलवीरा ॐ षु प्रताप पुञ्ज रन धीरा राजा का कल्याण करने वाला उसका एक चतुर मन्त्री था, जिसका नाम धर्मरुचि था और जो शुक्र के समान नीतिज्ञ था। एक तो चतुर मन्त्री, दूसरे बली और वीर भाई, तीसरे स्वयं भी बड़ा प्रतापी और रणधीर था। सेन संग चतुरंग अपारा ॐ अमित सुभट सव समर जुझारा सेन विलोकि राउ हरपाना ॐ अरु बाजे गहगहे निसाना तथी साथ में अपार चतुरङ्गिणी सेना थी, जिसमें युद्ध में जूझने वाले | ॐ असंख्य योद्धागण थे । इस प्रकार अपनी सेना को देखकर रजिा बहुत प्रसन्न

  • हुआ और घमाघम उसको डेङ्का बजने लगा। ॐ विजय हेतु कटकई वनाई ॐ सुदिन साधि नृप चलेउ वजाई गुम् जहँ तह परी अनेक लराई के जीते सकल भूप वरिझाई

दिग्विजय के लिये सेना सजाकर, वह राजा सुदिन शोधवाकर और डङ्का बजाकर चला । जहाँ-तहाँ अनेक युद्ध हुये; पर उसने सब राजाओं को ज़बरदस्ती जीत लिया। | सप्त दीप भुजबल बस कीन्हे ॐ लेइ लेइ दण्ड छाँड़ि नृप दीन्हे सकल अवनि मंडल तेहि काला के एक प्रतापभानु महिपाला अपनी भुजाओं के बल से उसने सात द्वीपों को वश में कर लिया और 'राजाओं से अर्थदंड ले-लेकर उन्हें छोड़ दिया । सारी पृथ्वी पर उस समय एक । प्रतापभानु ही एकमात्र ( चक्रवर्ती ) राजा था । १. सेना।