पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१८८

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| बाल-% , फळ १८५ हैं। वेद और पुराणों में जितने प्रकार के यज्ञ कहे गये हैं, राजा ने प्रत्येक प्रकार के यज्ञ को हज़ार-हज़ार बार प्रेम-सहित किया। हृदयें न कछु फल अनुसन्धाला' ॐ भूप विवेकी परम सुजाना करई जे धरम करम मन बानी ॐ वासुदेव अपित नृप ग्यानी हृदय में किसी फल की कामना नहीं थी। बुद्धिमान् राजा बड़ा ही ज्ञानवान् । था। वह ज्ञानी राजा कर्म, मन और वाणी से जो कुछ भी धर्म करता था, सेव यू भगवान् वासुदेव को अर्पित करके करता था। चढ़ि बर बाजि बार एक राजा ॐ मृगया कर सब साजि समाजा रामो बिंध्याचल गॅभीर बन गयऊ ॐ मृग पुनीत बहु मारत भयऊ एक बार वह राजा एक अच्छे घोड़े पर चढ़कर शिकार के लिये सब तैयारी करके विन्ध्याचल के घने बन में गया और वहाँ उसने बहुत-से अच्छे-अच्छे (राम) ॐ हिरन मारे। राम फिरत विपिन नृप दीख बराहू जनु धन दुरेउ ससिहि असि राहू बड़ बिधु नहिं समात मुख माहीं ॐ मनहुँ क्रोधवस उगिलत नाहीं बन में फिरते हुए राजा ने एक सुअर देखा । ( दाँतों के कारण वह ऐसा * मालूम होता था ) जैसे राहु चन्द्रमा को मुंह में पकड़कर वन में छिपा हुआ है। चन्द्रमा बड़ा होने से उसके मुंह में समाता नहीं और बह भी क्रोध के वश में उसे उगलता नहीं है। कोल कराल दुसन छबि गाई की तनु विसाल पीवर अधिकाई है। घुरघुरात हय आरौ पाएँ ॐ चकित विलोकत कान उठाएँ राम्रो | यह तो सुअर के भयानक दाँतों की शोभा कही गई। उसका शरीर भी । विशाल और मोटा था। घोड़े की आहट पाकर वह घुरघुराता हुआ कान उठाकर चौकन्ना होकर देख रहा था। छ । नील महीधर सिखर सय देखि बिसाल बराहु । चपरि चलेउ हय सुटुकि छुप हाँकि न होइ निवाहु। उनी नीले पर्वत की चोटी के समान बड़े डील-डौल वाले सुअर को देखकर १. कामना । २. सुअर । ३. आहह ।