पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१९०

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ॐ फिरत विपिन सिम एक देखा की तहँ वस नृपति कपट सुनि बेपा जासु देस नृप लीन्ह छड़ाई ॐ समर सेन तजि गयेउ पराई एन बन में फिरते हुये उसने एक आश्रम देखा; वहाँ एक राजा कपटी मुनि के |सु) भेस में रहता था, जिसका देश राजा प्रतापभानु ने छीन लिया था और जो सेना को छोड़कर युद्ध से भाग गया था । समय प्रतापभानु कर जानी ॐ आपन अति असमय अनुसानी मो गयेउ न गृह मन बहुत गलानी ॐ मिला न राजहि नृप अभिमानी | प्रतापभानु का समय अनुकूल जानकर और अपना समय प्रतिकूल अनुमानकर वह घर नहीं गया। उसके मन में बड़ी ग्लानि हुई। राजा स्वात्माभिॐ मानी था, इससे बह राजा प्रतापभानु से मिला भी नहीं है। रिस उर मारि रंक' जिमि राजा ॐ विपिल बसइ तापस के साजा । तासु समीप गवन नृप कीन्हा ॐ यह प्रतापरवि तेहि तब चीन्हा | मन में क्रोध को मारकर बह राजा तपस्वी के भेस में गरीब की तरह बन में बसता या } राजा प्रतापभानु उसी के पास गया । उसने तत्काल पहचान लिया कि यह प्रतापभानु है। राउ तृषित नहिं सो पहिचाना ॐ देखि सुवेप महामुनि जाना । उतरि तुरंग तें कीन्ह प्रनामा ॐ परम चतुर न कहेड निज नामा | राजा प्यासा था। उसने उसे नहीं पहचाना । सुन्दर वेष में देखकर राजा ने उसे सहामुनि समझा । घोड़े से उतरकर उसने उसे प्रणाम किया है परन्तु बड़ा चतुर होने के कारण प्रतापभानु ने उसे अपना नाम नहीं बतलाया । ॐ भूपति तृषित बिलोकि तेहि सवरू दीन्ह देखाइ । सज्जन पच्न समेत हय कीन्ह पति हरपाई ॥१५८।। राजा को प्यासा देखकर उसने उसे तालाव दिखला दिया, जिसमें घोड़ेॐ सहित राजा ने हर्षित होकर स्नान और जल-पान किया। राम गै स्रम सकल सुखी नृप भयऊ की लिज स्रम तापस ले गयऊ राम * आसन दीन्ह अस्त रवि जानी ॐ पुनि तापस बोले मृदु बानी १. गरीब । २. स्नान ।