पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१९७

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राम- राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम कुँडै १६४ % अच्छा मानस ॐ भी सुनो। हे पृथ्वीपति ! काल भी तुम्हारे चरणों पर सिर नवायेगा, केवल एक । रोम ब्राह्मण को कुल नहीं। के तपबल विप्र सदा बरिारा ॐ तिन्ह के कोप न कोउ रखवारा के । जौं बिग्रन्ह बस करहु नरेसा ॐ तौं तुम बस विधि बिष्नु महेसा है। तप के बल से ब्राह्मण सदा प्रबल रहते हैं। उनके कोप करने पर कोई छ । राम रक्षा करने वाला नहीं। हे राजन् ! तुम यदि ब्राह्मणों को वश में कर लो, तो तुम्हारे वश में ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी हो जायँगे। राम्ये चल न ब्रह्मकुल सन बरिआई सत्य कहउँ दोउ भुजा उठाई राम् बिप्रस्राप बिनु सुनु महिपाला ॐ तोर नास नहिं कवनेहुँ काला ब्राह्मण-कुल से ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं चल सकती । मैं दोनों भुजा उठाकर सत्य कहता हूँ। हे राजन् ! सुनो। ब्राह्मण को शाप न होगा, तो तुम्हारा नाश किसी काल में भी नहीं होगा। हो हरपेउ राउ बचन सुनि तासू ॐ नाथ न होइ मोर अब नासू । तव प्रसाद प्रभु कृपानिधाना ॐ मोकहुँ सबै काल कल्याना कैं राम राजा उसके वचन सुनकर प्रसन्न हुआ और कहने लगा हे स्वामी ! मेरा राम ॐ अब नाश नहीं होगा। हे कृपा के घर ! आपके प्रसाद से मेरा सब समय कल्याण हुँ राम होगा। एवमस्तु कहि कपट मुनि बोला कुटिल बहोरि।। - मिलब हमार भुलाब निज कहहुत हमर्हि न खोरि' । । वह दुष्ट कपट-मुनि एवमस्तु ( ऐसा ही हो ) कहकर फिर बोला-तुम मेरे राम) # मिलने और अपनी राह भूल जाने की बात किसी से कहोगे, तो ( तुम जानो ) के म मेरा दोष नहीं। हैं तातें मैं तोहि बरजउँ राजा कहें कथा तव परम अकाजा राम्। छठे स्रवन यह परत कहानी ॐ नास तुम्हार सत्य मम बानी | इसी से हे राजन् ! मैं तुमको रोकता हूँ कि इस प्रसंग की कथा किसी रामो दूसरे को कहने से तुम्हारा बड़ा अकाज होगा। यदि यह कथा छठे कान में आ * पहुँचेगी, तो तुम्हारा नाश होगा-मेरी यह वाणी सत्य है। १. दोप, अपराध ।। |