पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२०४

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। । । : ब्ल - उछ । ' - २०१ । राजा गुरु को पहचानकर आनन्दित हुआ । भ्रमवश उसे ज्ञान न रहा। (होम, उसने उसी समय सौ हजार ( एक लाख ) ब्राह्मणों को कुटुम्ब-सहित बरण किया ( न्योता दिया )। राम उपरोहित जेवनार . बनाई के छ रस चारि विधि जसि छु ति गाई छै मायामय तेहि कीन्ह रसोई के विजन बहु गनि सकइ न कोई एम पुरोहित ने छः रस और चार प्रकार के भोजन-जैसा वेदों में वर्णन है, से बनाये । उसने मायामयी रसोई तैयार की और इतने व्यञ्जन बनाये, जिन्हें कोई गिन नहीं सकता। विविध भृगन्ह कर आमिष राँधा ॐ तैहि महुँ विप्र माँसु खल साँधा भोजन कहूँ सव विप्र बोलाए के पग पखारि सादर बैठार अनेक प्रकार के पशुओं का मांस पकाया और उसमें उस दुष्ट ने ब्राह्मण | को मांस मिला दिया। भोजन के लिये सब ब्राह्मणों को बुलाया और उनके चरण धोकर उन्हें आदर-सहित बैठायो। परुसन जबहिं लाग महिपाला $ भइ अकासवानी तेहि काला रामो विप्रबृन्द उठि उठि गृह जाहू ॐ है बड़ि हानि अन्न जनि खाहू राम) | जब राजा परोसने लगा, तब उसी समय ( कोलकेतु कृत ) आकाशवाणी राम हुई । हे ब्राह्मणो ! उठ-उठकर अपने घर जाओ; यह अन्न मत खाओ। इसके खाने से बड़ी हानि है । भयेउ रसोई भूसुर मासू ॐ सब द्विज उठे मानि विस्वासू राम भूप विकल मति मोह भुलानी ॐ भावीबस न वि मुख वानी । ब्राह्मणों के मांस से यह रसोई हुई है। सब ब्राह्मण आकाश-वाणी का यू विश्वास मानकर उठ खड़े हुये । राजा व्याकुल हो गया। उसकी बुद्धि मोह में भूल गई थी । होनहार-वश उसके मुंह से एक बात भी नहीं निकली। ३) - बोले बिग्र स्कोप तब नहिं कछु कीन्ह बिचार ।। 3 जाई निसाचर होहू नृप घूढ़ सहित परिवार ॥१७३॥ । । तब ब्राह्मण क्रोध-सहित बिना कुछ विचार किये बोले---हे मूर्ख राजा ! तू जाकर परिवार-सहित राक्षस हो । १. ब्राह्मण ।